संपादकीय

अंतरिक्ष : जारी है कामयाबी का दौर

शशांक द्विवेदी की कलम से
आज से लगभग 43 साल पहले उपग्रहों का साइकिल और बैलगाड़ी से शुरू हुआ इसरो का सफर आज उस मकाम पर पहुंच गया है जहां भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में दुनिया के सबसे शक्तिशाली पांच देशों में से एक बन गया है.
अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और छलांग लगाते हुए इसरो ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपण की सेंचुरी लगा दी है.  अपनी सैन्य क्षमताओं और निगरानी तंत्र को बेहद मजबूत बनाने के लिए भारत ने आसमान में एक और बड़ी छलांग लगाते हुए आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी सी 40) की सहायता से कार्टोसेट-2 श्रंखला के रिमोट सेंसिंग उपग्रह सहित 31 उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया. इसमें एक भारतीय माइक्रो सैटेलाइट और एक नैनो सैटेलाइट के अलावा 28 छोटे विदेशी उपग्रह हैं.
यह इसरो का 42वां और साल 2018 का पहला मिशन है. इसके जरिए भेजा गया कार्टोसैट सैटेलाइट अपनी कक्षा में पहुंच गया है. ये सैटेलाइट न सिर्फ  भारत के सरहदी और पड़ोस के इलाकों पर अपनी पैनी नजर रखेगा बल्कि स्मार्ट सिटी नेटवर्क की योजनाओं में भी मददगार रहेगा. ये सैटेलाइट 500 किमी से भी ज्यादा ऊंचाई से सरहदों के करीब दुश्मन की सेना के खड़े टैंकों की गिनती कर सकता है. भारत के पास पहले से ऐसे पांच रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट मौजूद हैं. पिछले साल पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक में दुश्मन ठिकाने की सटीक जानकारी कार्टोसैट उपग्रह से ही मिली थी. अब कार्टोसैट श्रंखला के तीसरे सफल प्रक्षेपण के बाद देश की सैन्य निरीक्षण क्षमता में भारी इजाफा होगा. पीएसएलवी पर कार्टोसैट-2 के अलावा जो उपग्रह गए हैं, उनमें से 28 सैटेलाइट अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, फिनलैंड और दक्षिण कोरिया के हैं, जिनमें अकेले अमेरिका के 19 सैटेलाइट हैं. कार्टोसैट 2 सैटेलाइट सीरीज एक निगरानी उपग्रह है, जिसकी मदद से अब डिफेंस और कृषि क्षेत्र की तत्काल जानकारी मिलेगी. इसका इस्तेमाल तटीय क्षेत्रों और शहरों की निगरानी के लिए किया जाएगा. कार्टोसैट 2 सैटेलाइट सीरीज में हाई रेजुलेशन कैमरा लगा है, जिससे खींची फोटो का इस्तेमाल किया जाएगा.
कार्टोसैट-2 श्रृंखला के इस उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ ही भारत की अंतरिक्ष और अधिक पैनी और व्यापक होने जा रही है. हालिया रिमोट सेंसिंग उपग्रह की विभेदन क्षमता 0.6 मीटर की है. इसका अर्थ यह है कि यह छोटी चीजों की तस्वीरें ले सकता है. रिमोट सेंसिंग कार्टोसैट-2 श्रृंखला के उपग्रह का वजन 710  किलोग्राम है. इसके साथ सह यात्री उपग्रह भी है, जिसमें 100 किलोग्राम का माइक्रो और 10 किलोग्राम का भारतीय नैनो उपग्रह भी शामिल हैं, बाकी सभी सह यात्री उपग्रहों का कुल वजन करीब 613 किलोग्राम है. पीएसएलवी से प्रक्षेपण का खर्च लगभग 100 करोड़ रु पये आता है. पिछले साल ही अंतरिक्ष इतिहास में पहली बार 7 देशों के 104 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित करके इसरो ने इतिहास रच दिया था. ग्लोबल सैटेलाइट मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है. अभी यह इंडस्ट्री लगभग  200 अरब डालर की है. फिलहाल इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 41 फीसद की है. छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने में महारत हासिल कर चुकी इसरो ने अब तक सैटेलाइट लॉन्चिंग के जरिए 631 करोड़ की कमाई की है.
कोर्टोसैट -2 श्रृंखला के उपग्रह के सफल प्रक्षेपण से भारत को कई फायदे होंगे, जिसमें अब भारत में किसी भी जगह को अंतरिक्ष से देखने की क्षमता भी हासिल होगी. कार्टोसैट-2 सीरीज के उपग्रहों में पैनक्रोमैटिक और मल्टीस्पेक्ट्रल इमेज सेंसर लगे हैं. इनसे रिमोट सेंसिंग में भारत की काबिलियत सुधरेगी. इन उपग्रहों से मिले डाटा का इस्तेमाल सडक़ निर्माण के काम पर निगरानी रखने, बेहतर लैंड यूज और जल वितरण के लिए होगा.  इसके साथ ही अंतरिक्ष से हाई रिजोल्यूशन की तस्वीर मुमकिन होगी. दुश्मनों के सैनिक ठिकानों में गाडिय़ों तक की तादाद बताने में ये उपग्रह कारगर हैं. लिहाजा रक्षा क्षेत्र में भी इन उपग्रहों की खासी अहमियत है. सरकार का इरादा कार्टोसैट सैटेलाइट्स को शहरी विकास और स्मार्ट सिटी के विकास की योजनाओं में भी इस्तेमाल करने का है. साथ ही इनके जरिये पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर भी नजर रखी जा सकेगी. भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है. देश में गरीबी दूर करने  और विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इसरो काफी मददगार साबित हो सकता है.
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