जगदलपुर: बस्तर के सुदूर क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के द्वारा चलाए जा रहे अभियान से जहां नक्सली आतंक के गढ़ ढह रहे हैं। वहीं इन क्षेत्रों के ग्रामीण स्वास्थ्य के मामले में दु:खी हो रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार किए गए एक सर्वेक्षण में इन क्षेत्रों में सरकार की सुपोषण अभियान की स्थिति बेहद चिंताजनक है। दक्षिण-पश्चिम बस्तर के नक्सलियों का अभेद्य क्षेत्र माना जाने वाला अरनपुर का ही पूरा क्षेत्र अब सुरक्षाकर्मियों की आवाज से गूंज रहा है और ग्रामीण अपने आपको नक्सलियों से मुक्त पाकर खुश हैं। वहीं दूसरी ओर अब तक स्वास्थ्य के प्रति इन क्षेत्रों के ग्रामीण जागरूक नहीं हैं। यहां अब भी गरीबी तो है ही लेकिन यहां के बच्चे कुपोषण त्वचा की बीमारियों से लड़ रहे हैं।
अरनपुर क्षेत्र में जब मीडिया के द्वारा यहां कि स्थिति देखी गई तो यह पाया गया कि एक भवन में संचालित प्राथमिक शाला भवन के आंगनबाड़ी केंद्र के बाहर अपनी कक्षा छोड़ एक बालक अपनी गोद में तीन महीने के अपने छोटे भाई को लेकर बैठा था। रसोइया पिता के हड़ताल पर रहने के कारण मां भीमे इसी स्कूल में मध्यान्ह भोजन बना रही थी। इन बच्चों को जब समीप से देखा गया तो दोनों भाइयों की स्थिति कमजोर और बीमारीयुक्त स्पष्ट रूप से दिखाई दी।
बच्चों की हालत इतनी खराब थी कि उनके पूरे शरीर पर फोड़े और त्वचा के विकार दिखाई दिए। पोषण की तो कहीं मात्रा ही उनके शरीर में दिखाई नहीं पड़ी। इस संबंध में त्वचा रोग विशेषज्ञों ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के प्रति लापरवाही रखी जाती है। जिसका परिणाम है इन क्षेत्रों में सामान्य रूप से त्वचा रोग होता ही है। जबकि इंफेक्शन, खुजली, घाव पर विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता पड़ती है।
पूर गांव का परिदृश्य देखने के बाद यह पाया गया कि गांव में रहने वाले सभी बच्चों व ग्रामीणों में पोषण की कमी है और स्वच्छता के प्रति उनमें कोई समझ नहीं है। इस प्रकार की स्थिति पूरे क्षेत्र के गांव में दिखाई पड़ती है। ग्रामीणों को अब स्वच्छता के प्रति सजग व पोषण आहार के प्रति सतर्कता रखने के लिए शासन की पहल अतिआवश्यक है।
यह भी पाया गया कि ग्राम अरनपुर में करीब 1000 की आबादी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने का एक मात्र स्थल सुरक्षाबलों का अस्पताल है। कहने को यहां स्वास्थ्य केंद्र भी है लेकिन स्वास्थ्य कर्मचारी उपलब्ध ही नहीं है।
सुधीर जैन
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