जगदलपुर : दिल्ली में आयोजित कामनवेल्थ सम्मेलन से लेकर पूरे देश के विभिन्न प्रदेशों में बस्तर के लोक गीतों और संगीत को बिखेरने में बस्तर के बस्तर बैंड का कोई सानी नहीं है और यह बैंड पिछले 12 वर्षों से अपनी बस्तर की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा रहा है।
बस्तर की संस्कृति के बारे में और यहां के लोक नृत्य व संगीत को जब लोग अपने यहां देखते हैं तो उन्हें बस्तर के बारे में और अधिक जानकारी लेने का चाव उत्पन्न होता है जो बस्तर को एक नई पहचान दे रहा है। इस बस्तर बैंड की यह विशेषता है कि इसमें संभागीय स्तर पर बोली जाने वाली सभी बोलियों के गीत व वहां के लोक संगीत प्रस्तुत किए जाते हैं जिसे सुनकर बस्तर की विविधता के बारे में बस्तर से बाहर के लोग जान पाते हैं।
बस्तर बैंड के एक सदस्य ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि परंपरागत वाद्ययंत्रों के साथ बस्तर में प्रचलित दंडारी, होल्की मांदरी, कड़सार, गौर नृत्य सहित कई अन्य बस्तर के विभिन्न अंचलों में प्रचलित लोक नृत्यों का प्रदर्शन स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है और इसमें बस्तर बैंड के सभी सदस्य विभिन्न अंचलों के धुनें बड़े आराम से अपने वाद्य यंत्रों से निकालकर लोगों को भाव विभोर कर देते हैं।
बैंड पार्टी द्वारा यह भी बताया गया कि इस बैंड में कुल 23 लोग हैं और सभी बस्तर की संस्कृति को प्रसिद्ध करने के लिए कार्यरत हैं। बैंड के एक सदस्य ने यह भी बताया कि अभी असम जाकर बैंड की प्रस्तुति देने के लिए तैयारी चल रही है और वे तीन घंटे का निरंतर अभ्यास कर रहे हैं।
यह बस्तर बैंड ग्राम कोयापड़ में गठित हुआ है और इसमें महिला नर्तकों में लक्ष्मी सोढ़ी सहित कई महिलाएं हैं व पुरूष नर्तकों में बुधराम, हुंगताती, नवेल, सुकता, रघबाती, कमल, बघेल पुरूष व महिला नर्तक दोनों ही प्रकार के सदस्य शामिल हैंं। इस बैंड पार्टी की यही कोशिश है कि उन्हें बाहर जाकर जहां भी प्रदर्शन करना पड़े वहां हर हालत में जाकर वे अपनी बस्तर की संस्कृति को प्रसिद्ध बनाने की कोशिश में कोई कमी नहीं रखेंगे।
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