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राजिम :श्रीराजीव लोचन के जन्मोत्सव का दिवस है माघ पूर्णिमा का पर्व

राजिम :, माघ पूर्णिमा का पर्व क्षेत्र में भगवान श्रीराजीवलोचन के जन्मोत्सव के दिवस के रूप में मनाये जाने की अतिप्राचीन परंपरा है। इस अवसर पर भगवान राजीवलोचन का शोष्ड़ोपचार पद्धति से पूजा अर्चना करते हुए उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है। माघी पूर्णिमा के दिन क्षेत्र के तमाम श्रद्धालु बड़ी संख्या में राजिम आकर भगवान श्रीराजीवलोचन का दर्शन कर पुण्य लाभ लेते हैं।
ऐसी मान्यता है कि आज के दिन यदि भगवान राजीवलोचन के तीनों पहर के दर्शन किये जाने पर उसे जगन्नाथ पुरी की यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है। जानकारी के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि आज के दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भगवान श्रीराजीवलोचन के दर्शन करने के लिए यहां सुक्ष्म रूप से पधारकर उनके दर्शन करते है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि आज माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान राजीवलोचन के दर्शन करने भगवान जगन्नाथ के दर्शन का लाभ मिलने के कारण इसे जगन्नाथ पुरी की यात्रा का पुण्य लाभ उस भक्त को मिलता है जो भक्त आज के दिन तीनों पहर भगवान राजीवलोचन के दर्शन करता है।
कहा जाता है कि भगवान राजीवलोचन का विग्रह स्वरूप का दिन में तीन रूप बदलता है और उनके स्वरूप को पूरी भक्ति, आस्था, निष्ठा और समर्पित भाव से दर्शन किये जाने तो उनके बाल्यावस्था, युवावस्था तथा वृध्दावस्था के तीनों स्वरूपों के दर्शन का अहसास होता है। भगवान राजीवलोचन को राजीवलोचन कहने के पीछे भी एक मान्यता यह है कि जब भगवान राम अपने आराध्य देव महादेव का 101 कमल पुष्प से महाभिषेक कर रहे थे तभी एक कमल कम हो जाने के कारण उन्होंने वैकल्पिक तौर पर अपने एक आंख को निकालकर भगवान षिव को अर्पण कर उनके कमलाभिषेक को पूरा किया। राम की इस निष्ठा और भक्ति देखकर भगवान षिव काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीराजीवलोचन अर्थात कमल के नेत्र वाले होने के नाम की उपमा दी। तब से ही उन्हे राजीवलोचन के नाम से जाना जाता है।
भगवान राजीवलोचन मंदिर प्रांगण मे ही राजीवलोचन भगवान की परम भक्त राजिम तेलीन का भी मंदिर है जो राजिम तेलीन की  भगवान राजीवलोचन के प्रति असीम भक्ति का प्रतीक माना जाता है। राजीवलोचन भगवान की इस परम भक्त के कारण ही इस क्षेत्र का नाम श्राजिमश् पड़ा। पूर्व में इस क्षेत्र में अत्याधिक कमल होने के कारण इसे कमल क्षेत्र पदमावती पुरी के नाम से जाना जाता था लेकिन राजिम तेलीन की असीम भक्ति के कारण संभवता इस नगर का नाम राजिम पड़ा।
राजिम का महत्व राजीवलोचन के मंदिर के अलावा यहां पर तीन नदियों के पवित्र संगम के कारण भी काफी महत्वपूर्ण है। राजिम में इस संगम के कारण इसे प्रयाग के संगम के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई है। इसलिये क्षेत्र के अनेक लोग अपने परिजनों के अस्थि विसर्जन के लिए राजिम आते है। चूंकि पुराणों में महानदी को चित्रोत्पला गंगा कहा गया है और महानदी को चित्रोत्पला गंगा की मान्यता तथा इसमें पैरी और सोढूर नदियों का मिलन होने के कारण तथा प्रयाग के समकक्ष माने जाने के कारण यह क्षेत्र संगम कहलाया तथा संगम होने के कारण आज इस माघ पूर्णिमा मेला उत्सव मे भव्य कुंभ कल्प का स्वरूप धारण कर लिया है। क्षेत्र के वे लोग जो कुंभ स्नान के लिए ईलाहाबाद तथा हरिव्दार आदि स्थानों पर जाने में सक्षम नहीं थे अब उन्हे राजिम में ही प्रतिवर्ष कुंभ कल्प तथा साधुसंतो के दर्शनो का लाभ प्राप्त हो रहा है।  
राजिम में भगवान राजीवलोचन का मंदिर होने के अलावा संगम के मध्य बीचो बीच भगवान कुलेश्वरनाथ महादेव का स्वयंभू शिवलिंग स्थित है। इस मंदिर की विशेषता है कि नदी में चाहे जितनी बाढ़ आये लेकिन यह मंदिर कभी नहीं डूबता है ऐसा कहा जाता है कि जब नदी में काफी बाढ़ आती है और वह पूरी तरह उफान पर होती है तब भगवान कुलेष्वर आवाज लगाते है कि मामा मुझे बचाव तब नदी के तट पर स्थित मामा भांचा महादेव उनकी आवाज पर बाढ़ कम कर देते है तथा नदी के जल का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है। नदी में स्थित कुलेष्वर महादेव मंदिर के पास ही लोमष ऋषि का आश्रम स्थित है। जिसे बेलाही के नाम से भी जाना जाता है। जनश्रुति है कि उस आश्रम में संभवता बेल के काफी घने वृक्ष रहे होगें जिसके कारण लोमष ऋषि के आश्रम को बेलाही के नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान राजीवलोचन की पहली पूजा अर्चना लोमष ऋषि के व्दारा ही की जाती है जिसके कुछ ऐसे साक्ष्य और प्रमाण मिलने के कारण राजीवलोचन मंदिर के पुजारियों ने इस बात की पुष्टि की कि लोमष ऋषि अपने आश्रम से आकर अदृष्य रूप से आकर भगवान राजीवलोचन की पूजा करते है।
 

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