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बम की अफवाह और 400 किमी की दौड़: फिर भी समय पर झांसी पहुंची ‘संपर्क क्रांति’

रायपुर। दिल्ली से रवाना हुई छत्तीसगढ़ संपर्क क्रांति एक्सप्रेस जब चल पड़ी थी, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि इसके भीतर एक अफवाह सफर कर रही है—एक बम की अफवाह। हजरत निज़ामुद्दीन से शाम 5.55 बजे निकली यह ट्रेन महज़ 10 मिनट बाद एक चौंकाने वाली सूचना के घेरे में आ गई। रेल मदद हेल्पलाइन पर एक शख्स ने दावा किया कि ट्रेन के स्लीपर कोच में बम है। उसने खुद को एक रेल यात्री बताया… लेकिन तब तक ट्रेन दिल्ली की सरहद पार कर चुकी थी।

सवाल ये है—क्या इस अलर्ट के बावजूद ट्रेन को बीच रास्ते में रोका गया? नहीं।
फरीदाबाद, मथुरा, आगरा, धौलपुर और ग्वालियर जैसे बड़े स्टेशनों से होकर ट्रेन गुजरती रही। यात्रियों को खबर भी नहीं थी कि वे एक ‘संदिग्ध’ ट्रेन में सफर कर रहे हैं।

रेलवे प्रशासन ने सूचना तो लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश जीआरपी मुख्यालय को दे दी, लेकिन ट्रेन को बीच में रोकने का फैसला नहीं लिया गया। 400 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के बाद ट्रेन झांसी के वीरांगना लक्ष्मीबाई स्टेशन पर रोकी गई—जहां पहले से ही सुरक्षा बल मोर्चा संभाल चुके थे।

रात 11:31 बजे जैसे ही ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुँची, पूरे स्टेशन को एक सैन्य छावनी में तब्दील कर दिया गया था। प्लेटफॉर्म नंबर 2 को पूरी तरह खाली कराया गया।
सिटी मजिस्ट्रेट प्रमोद झा, एसपी सिटी ज्ञानेंद्र कुमार, आरपीएफ कमांडेंट विवेकानंद नारायण और स्टेशन डायरेक्टर सीमा तिवारी खुद मौके पर थे।

डॉग स्क्वायड, बम निरोधक दस्ते, जीआरपी और आरपीएफ ने संयुक्त रूप से ट्रेन के सभी कोच खाली कराए। यात्रियों का सामान प्लेटफॉर्म पर उतार दिया गया और लगभग 50 मिनट तक चली गहन जांच।

नतीजा? कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली। यह महज़ एक अफवाह थी—एक झूठ जिसने 400 किलोमीटर तक देश की एक सुपरफास्ट ट्रेन को बिना रुके दौड़ा दिया।

राहत की सांस जरूर ली गई, लेकिन सवाल भी खड़े हुए—

अगर बम होता तो क्या इतना इंतजार किया जाता?

क्या किसी ने ट्रेन की सुरक्षा को लेकर लापरवाही की?

और अगर अफवाह थी, तो क्या उस कॉल करने वाले तक पहुंच पाई पुलिस?

रेलवे ने जानबूझकर झांसी को सर्च ऑपरेशन के लिए चुना क्योंकि वहां तैयारियां की जा सकती थीं। लेकिन इस फैसले ने देश की रेलवे सुरक्षा रणनीति पर एक बार फिर उंगली उठा दी है।

जांच के बाद ट्रेन रात 12:24 बजे अपने अगले सफर के लिए रवाना हुई।
यात्रियों ने फिर से चैन की नींद ली—लेकिन इस सफर की कहानी अब सिर्फ दूरी की नहीं, एक डर की भी थी।

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