बस्तर में विकास और शांति की ओर बढ़ते कदम: नियद नेल्लानार योजना बनी बदलाव की आधारशिला

रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में शुरू की गई नियद नेल्लानार योजना ने बस्तर के नक्सल प्रभावित दूर-दराज़ गांवों में विकास की नई रोशनी फैलाई है। इस योजना के तहत सुरक्षा कैंपों से पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।
योजना का उद्देश्य न केवल आधारभूत विकास करना है, बल्कि आदिवासी समुदायों का विश्वास जीतना और माओवादियों को मुख्यधारा में लाना भी है। इस कड़ी में नक्सल पुनर्वास नीति प्रभावी साबित हो रही है, जिसके तहत शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया जा रहा है।
नक्सल उन्मूलन अभियान और नियद नेल्लानार योजना के प्रभाव से कस्तुरमेटा, मसपुर, ईरकभट्टी, मोहंदी, होरादी, गारपा, कच्चापाल, कोडलियर, कुतुल, बेड़माकोटी, पदमकोट, कान्दुलनार, नेलांगुर, पांगुड़, रायनार जैसे अति संवेदनशील क्षेत्रों में बदलाव की बयार बह रही है। 1 सितंबर 2025 को एडजूम में 16वां नया सुरक्षा कैंप स्थापित किया गया, जिससे पुलिस का प्रभाव और अधिक मजबूत हुआ है।
इसका असर यह रहा कि 10 सितंबर 2025 को 16 माओवादियों ने पुलिस अधीक्षक नारायणपुर के समक्ष आत्मसमर्पण किया। आत्मसमर्पण करने वालों में जनताना सरकार सदस्य, पंचायत मिलिशिया डिप्टी कमांडर, पंचायत सरकार सदस्य, पंचायत मिलिशिया सदस्य और न्याय शाखा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे माओवादी शामिल हैं।
इन आत्मसमर्पित नक्सलियों ने इंट्रोगेशन के दौरान बताया कि शीर्ष माओवादी नेता आदिवासियों को झूठे सपने दिखाकर उन्हें शोषण और गुलामी की ओर धकेलते हैं। ये माओवादी निचले स्तर पर रहकर राशन, दवाइयां, हथियार और IED लगाने जैसे कार्यों में शामिल रहते थे और स्लीपर सेल की भूमिका निभाते थे।
2025 में अब तक कुल 164 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। सरकार की पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पित माओवादियों को 50-50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी गई है और सभी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
एसपी नारायणपुर ने कहा कि अबूझमाड़ के आदिवासियों को माओवादी विचारधारा से दूर रखना और उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ना हमारी प्राथमिकता है। वहीं पुलिस महानिरीक्षक ने स्पष्ट किया कि माओवादी संगठनों के पास अब हिंसा छोड़ आत्मसमर्पण के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
अब समय है कि बस्तर के लोग भय और हिंसा से मुक्त होकर एक शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन की ओर बढ़ें।