सिरपुर – जहाँ इतिहास बोलता है, संस्कृति मुस्कुराती है और अध्यात्म सांस लेता है

रायपुर। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में बसा सिरपुर (श्रीपुर) केवल एक पुरातात्त्विक स्थल नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का सजीव प्रतीक है। यह वही नगर है, जो कभी महान सम्राट महाशिवगुप्त बालार्जुन की राजधानी रहा — और आज भी अपनी अद्भुत स्थापत्य कला, बौद्ध धरोहरों और प्राचीन मंदिरों से विश्व को आकर्षित कर रहा है।
सिरपुर का उल्लेख न केवल प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है, बल्कि 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इसका वर्णन किया, जिसने सिरपुर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई।
यह नगर धार्मिक सहिष्णुता और कला का संगम है — जहाँ भगवान शिव, विष्णु, बुद्ध और जैन परंपरा के निशान आज भी सांस लेते हैं। यहाँ मिले हैं 22 शिव मंदिर, 5 विष्णु मंदिर, 3 जैन विहार और एक विशाल बौद्ध विहार के अवशेष, जो इसकी वैभवशाली विरासत का प्रमाण हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सिरपुर को नई चमक देने में जुटा है — डिजिटल टूर, क्यूआर कोड आधारित जानकारी और 3D गाइडेंस सिस्टम जैसी आधुनिक तकनीकों के साथ सिरपुर अब इतिहास और तकनीक का संगम बन रहा है।
यहाँ स्थित लक्ष्मण मंदिर, भारत का पहला ईंटों से निर्मित मंदिर है, जो वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। आनंदप्रभु कुटीर विहार बौद्ध भिक्षुओं का प्रमुख केंद्र रहा है, जहाँ चीन से आए भिक्षु अध्ययन करते थे। वहीं गंधेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित सांस्कृतिक धरोहर है।
1872 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने सिरपुर के अवशेषों की खोज की थी — जिसके बाद हुए उत्खननों में बुद्ध, विष्णु, शिव और जैन परंपराओं के अनगिनत प्रमाण मिले। आज चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के विद्वान सिरपुर को एशिया की बौद्ध धरोहरों में एक रत्न मानते हैं।
हर साल आयोजित सिरपुर महोत्सव अब छत्तीसगढ़ की पहचान बन चुका है — जहाँ देश-विदेश के कलाकार शास्त्रीय नृत्य, संगीत और नाट्य प्रस्तुतियाँ देकर इस धरती की गरिमा बढ़ाते हैं। यहाँ ईको-ट्रेल, हस्तशिल्प केंद्र और स्थानीय भोजनालयों की योजनाएँ भी चलाई जा रही हैं, ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिले और पर्यटन फले-फूले।
विजन 2047 के तहत सिरपुर को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने का लक्ष्य तय किया गया है। अत्याधुनिक तकनीक से इसकी पुरातात्त्विक संरचनाओं का संरक्षण किया जा रहा है।
सिरपुर केवल छत्तीसगढ़ नहीं, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक है — जहाँ इतिहास बोलता है, संस्कृति मुस्कुराती है और अध्यात्म सांस लेता है।




