पाकिस्तान की मुश्किलें गहराईं, तुर्की में अफगान वार्ता पर छाया तनाव

तुर्की में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चल रही शांति वार्ता पर तनाव का बादल मंडरा गया है। दोनों देशों के प्रतिनिधि जहां वार्ता टेबल पर शांति बहाली की कोशिश में जुटे हैं, वहीं अफगान-पाक सीमा से गोलीबारी की खबरों ने पूरी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में डाल दिया है।
जानकारी के अनुसार, गुरुवार को पाकिस्तान की ओर से स्पिन बोल्डक कस्बे के पास फायरिंग की गई, जिससे वार्ता का माहौल बिगड़ गया। यह वही इलाका है जहां पहले भी कई बार दोनों देशों के बीच झड़पें हो चुकी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की आक्रामक नीतियां इस्लामाबाद और काबुल के रिश्तों में नई खटास पैदा कर रही हैं, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता और बढ़ सकती है।
रूस का अप्रत्याशित समर्थन तालिबान के नाम
इस बीच रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को खुला समर्थन दिया है। मॉस्को में आयोजित CSTO (Collective Security Treaty Organization) और CIS (Commonwealth of Independent States) की संयुक्त बैठक में रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सर्गेई शोइगु ने कहा कि अफगानिस्तान में “महत्वपूर्ण और सकारात्मक परिवर्तन” हो रहे हैं। उन्होंने अफगानिस्तान को क्षेत्रीय आर्थिक ढांचे में फिर से शामिल करने की बात कही और कहा कि “सुरक्षा तभी संभव है जब अफगानिस्तान आर्थिक रूप से मज़बूत हो।”
सीमा सुरक्षा और भारत की भूमिका
CSTO महासचिव इमानगाली तस्मागाम्बेटोव ने अफगानिस्तान-ताजिकिस्तान सीमा की सुरक्षा पर ज़ोर दिया, यह कहते हुए कि “अफगानिस्तान की स्थिरता पूरे मध्य एशिया की सुरक्षा की कुंजी है।”
वहीं भारत ने भी अपनी भूमिका स्पष्ट की है। भारतीय प्रतिनिधियों ने हाल ही में अफगानिस्तान के कृषि मंत्री से मुलाकात की और कृषि अनुसंधान व क्षमता निर्माण में सहयोग देने का वादा किया। यह कदम अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की दिशा में भारत की एक रणनीतिक पहल माना जा रहा है।
जहां पाकिस्तान की नीतियां शांति वार्ता को कठिन बना रही हैं, वहीं रूस और भारत के कदम क्षेत्रीय समीकरणों को नया आकार दे सकते हैं। अफगानिस्तान इस समय वैश्विक राजनीति के केंद्र में है — जहां हर देश अपनी भूमिका तय कर रहा है।



