जब अटल ने सोचा BJP से अलग राह का, आडवाणी से दूरी और पोखरण का अनकहा दर्द

भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी को दशकों तक अटूट माना गया, लेकिन इस मजबूत रिश्ते के भीतर भी ऐसे मोड़ आए, जिनकी चर्चा कम ही हुई। अटल की जयंती की पूर्व संध्या पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने एक ऐसा ही अनसुना किस्सा सामने रखा, जिसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी।
प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय में आयोजित व्याख्यान में नीरजा चौधरी ने बताया कि 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद अटल बिहारी वाजपेयी भीतर से काफी आहत थे। पार्टी को सिर्फ दो सीटें मिलीं, ग्वालियर से खुद अटल चुनाव हार गए और उसी दौर में आडवाणी का कद तेजी से बढ़ने लगा। इसी मानसिक उथल-पुथल के बीच अटल ने कुछ समय के लिए भाजपा से अलग होकर नई राजनीतिक पार्टी बनाने का विचार किया। हालांकि यह सोच ज्यादा दिन नहीं टिक पाई और अटल ने संगठन के साथ बने रहने का फैसला किया।
व्याख्यान में पोखरण-2 परमाणु परीक्षण से जुड़ा एक बेहद भावुक प्रसंग भी सामने आया। नीरजा चौधरी के अनुसार, 1998 के इस ऐतिहासिक फैसले की जानकारी अटल ने अपने प्रधान सचिव बृजेश मिश्रा और सेना प्रमुखों के साथ साझा की, लेकिन आडवाणी को इस निर्णय में शामिल नहीं किया गया। यहां तक कि मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को भी परीक्षण से महज दो दिन पहले, बिना तारीख बताए, सूचना दी गई।
नीरजा चौधरी ने 11 मई 1998 का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह नॉर्थ ब्लॉक में आडवाणी से मिलने पहुंचीं, तो वे बेहद अकेले और टूटे हुए नजर आए। आंखों में आंसू थे और मन में वर्षों की मित्रता के अनदेखे हो जाने का दर्द। उन्हें इस बात की गहरी पीड़ा थी कि दशकों के साथ और भरोसे के बावजूद उन्हें इस ऐतिहासिक फैसले से दूर रखा गया।
उन्होंने यह भी कहा कि 1990 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी की सर्वमान्य छवि और सभी दलों से उनके बेहतर रिश्तों ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग ही ऊंचाई पर पहुंचा दिया था। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव के साथ भी उनके सौहार्दपूर्ण संबंध रहे, जिनकी जड़ें पुरानी राजनीतिक पहचान और आपसी सम्मान में थीं।



