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अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में नया मोड़ आ गया है. सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई में ये लगभग तय हो गया है कि अब ये मामला एक बार फिर मध्यस्थता की ओर जा रहा है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में बनी पीठ ने पक्षकारों से मध्यस्थों के नाम देने को कहा है. जबकि, सुप्रीम कोर्ट में मौजूद कुछ पक्षकारों ने मध्यस्थता का विरोध किया तो कुछ ने पक्ष भी रखा. पढ़ें मध्यस्थता का किस पक्ष ने विरोध किया है और किसने साथ दिया.

निर्मोही अखाड़ा – निर्मोही अखाड़े की ओर से वकील सुशील जैन ने कहा कि ये ज़मीन हमारी है, हमें यहां पूजा का अधिकार है. लेकिन अगर मध्यस्थता होती है सभी पक्षों को साथ आना होगा. निर्मोही अखाड़े ने कहा कि काफी हिस्सा अभी भी हमारे पास है, लेकिन ऐसे में काफी समझौता करना पड़ेगा.

बाबरी मस्जिद पक्ष – मस्जिद पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कोर्ट में कहा है कि मस्जिद पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है. उन्होंने ये भी कहा कि हम किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार हैं. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि मध्यस्थता पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए.

राम लला – रामलला की ओर से सीनियर वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि अयोध्या राम की जन्मभूमि है, इसलिए ये एक आस्था का विषय है. इसलिए इसमें किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता है. इसमें सिर्फ यही फैसला हो सकता है कि मस्जिद कही ओर बना सकते हैं, हम इसके लिए क्राउडफंडिंग करने के लिए भी तैयार हैं. मध्यस्थता का कोई सवाल नहीं होता है.

हिंदू महासभा – हिंदू महासभा की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने किसी भी तरह का समझौता करने का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट में पार्टियां मान जाती हैं, तो आम जनता इस समझौते को नहीं मानेगी. उनकी ओर से ये भी कहा कि इसके लिए पब्लिक नोटिस देना जरूरी है, जिसमें काफी लंबा समय लगता है. हिंदू महासभा की ओर से कहा गया कि क्योंकि ये हमारी जमीन है इसलिए हम मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं हैं.

हालांकि, कोर्ट के बाहर हिंदू महासभा के चक्रपाणी ने कहा कि वह मध्यस्थता के पक्ष में हैं, हम चाहते हैं कि मामले की सुनवाई जारी रहनी चाहिए.

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