बहुत पुरानी है उत्तर कोरिया से अमेरिका की दुश्मनी की कहानी
शुरुआत एक दूसरे को तबाह और बर्बाद करने की धमकियों से हुई थी. फिर एटम बम का बटन दबाने दबाने तक बात पहुंचं गई. लेकिन कहते है ना कि बात करने से ही बात बनती है. फिर एक ऐसा वक्त आया जब एक दूसरे की जान के दुश्मन बने दोनों नेताओं ने आपस में मुलाकात की और अब ये नज़दीकियां इतनी बढीं की इतिहास में पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने 70 साल पुराने अपने दुश्मन की सरज़मीं पर कदम रखा. जी, पूरी दुनिया उस वक्त हैरान रह गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया की धरती पर कदम रखा.
ट्रंप ने उसी साउथ कोरिया की जमीन पर पहला कदम रखा, जिससे कुछ दिनों पहले तक उसकी इतनी दुश्मनी थी कि दोनों की वजह से दुनिया पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडरा रहा था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि दोनों एक दिन इतने करीब आ जाएंगे कि ट्रंप कोरिया की धरती पर कदम रखने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाएंगे. इन दोनों ने ना केवल मुलाकात की बल्कि ट्रंप ने किम जोंग उन को व्हाइट हाउस आने के न्यौता भी दिया.
कोरिया की कहानी बहुत उतार चढाव वाली है. दरअसल, 70 साल पहले कोरिया एक ही था. लेकिन बाद में उसके दो टुकड़े हो गए. जी हां. करीब 70 साल पहले एक था कोरिया. मगर फिर वो सब कुछ हुआ जिसके बाद कोरिया के दो टुकड़े हो गए. एक उत्तर कोरिया बन गया. दूसरा दक्षिण कोरिया. मगर बंटवारे के बाद से ही दक्षिण कोरिया तो शांत रहा. कुछ वक्त बाद ही उसने लोकतंत्र की राह भी पक़ड़ ली. मगर उत्तर कोरिया के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो बमबाज़ बन गया. बमों और मिसाइलों के पीछे पड़ गया? दक्षिण कोरिया के साथ उसकी दुश्मनी फिर भी समझी जा सकती है. पर अमेरिका से उसकी ऐसी क्या दुश्मनी है? तो इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए एक था कोरिया की कहानी जानना जरूरी है.
नफरतों की सरहद
दुनिया के नक्शे पर आज की तारीख में ये जो दो मुल्क नजर आते हैं. दरअसल वो कभी एक थे. सीमा एक थी. लोग एक थे. राष्ट्र एक था. राष्ट्राध्यक्ष एक था. मगर नफरत की बुनियाद पर खींची गई सरहद की इस लकीर ने देखते ही देखते इसे दुनिया का सबसे खतरनाक बार्डर बना दिया. बार्डर के एक तरफ का देश उत्तर कोरिया कहलाया तो दूसरी तरफ का दक्षिण कोरिया.
कोरिया राजवंश की दास्तान
कोरिया की ये कहानी शुरू होती है सिला राजवंश के दौर से.. करीब 900 साल के सिला शासन में कोरियाई प्रायद्वीप में कोरिया चीन औऱ जापान से अलग दुनिया के नक्शे पर एक मज़बूत पहचान रखता था. मगर 20वीं सदी आते आते सिला राजवंश की पकड़ कोरिया पर कमजोर पड़ने लगी.
1910 में जापान ने किया कब्जा
कोरिया प्रायद्वीप में करीब डेढ़ दशक के दबदबे के बाद जापान ने साल 1910 में इस सिला राजवंश पर कब्ज़ा कर लिया. मगर जापानी कब्ज़े के साथ ही इस मुल्क में विद्रोह की आग भड़कनी शुरू हो गई. कोरियाई लोगों ने अपनी आज़ादी के लिए कई विद्रोही संगठन बना लिए. जिनमें से कुछ चीनी औऱ सोवियत कम्यूनिस्ट समर्थक थे. और कुछ संगठनों को अमेरिका का समर्थन हासिल था. चीनी कम्यूनिस्टों के साथ मिलकर विद्रोही किम संग इल ने एक गोरिल्ला फौज तैयार की जो जापान से मुकाबला कर रही थी.
1945 में जापान से मिली आजादी
उधर 1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिकी दुश्मनी जापानियों को भारी पड़ी. और इस युद्ध में बुरी तरह हारने के साथ ही जापान को हथियार डालने पड़े. इसी के साथ 36 सालों की गुलामी के बाद कोरिया जापान के चंगुल से आज़ाद हो गया. मगर तब तक द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छटे नहीं थें. पूरी दुनिया तब दो गुटों में बंटती नजर आ रही थी. एक अमेरिकी गुट और दूसरा सोवियत गुट. कोरियाई विद्रोही भी इससे अछूते नहीं रहे.
आजादी के बाद कोरिया के दो टुकड़े
कोरिया को जापान से आजादी तो मिल गई पर जापान के कोरिया छोड़ते ही कोरिया में गृहयुद्ध जैसे हालात बन गए. आज़ादी के लिए बने गुट अब दो अलग अलग पावर सेंटर में बंट गए थे. कोरिया के उत्तरी हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमाए किम इल संग के कम्युनिस्ट गुट को सोवियत संघ का समर्थन हासिल था. तो कोरिया के दक्षिणी हिस्से पर अपना दबदबा कायम किए हए कम्यूनिस्ट विरोधी नेता सिगमन री के गुट को अमेरिका का समर्थन मिला हुआ था. अब हालात ऐसे बने की दोनों के कब्ज़े वाले इलाकों को ध्यान में रखते हुए कोरिया के दो टुकड़े कर दिए गए. विभाजन के बाद एक उत्तर कोरिया बना और दूसरा दक्षिण कोरिया.
15 अगस्त 1948: विभाजन के बाद विवाद
मगर विभाजन का ये विवाद तो अभी शुरू ही हुआ था. जापान से आज़ादी के बाद 1947 में अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र के ज़रिए कोरिया को फिर से एक राष्ट्र बनाने की पहल की. इसके साथ ही अमेरिका के समर्थन से सीगमन री ने पूरे कोरिया पर अधिकार जमाते हुए सियोल में रिपब्लिक ऑफ कोरिया के गठन की घोषणा कर दी. मगर इस घोषणा के 25 दिन बाद ही किम इल संग ने भी प्यांगयांग में डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया के गठन की घोषणा कर के पूरे कोरिया पर अपने अधिकार का ऐलान कर दिया. बंटवारे के बावजूद दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनीतिक लड़ाई जारी रही.
25 जून 1950: दक्षिण कोरिया पर हमला
कोरिया पर अधिकार को लेकर अभी विवाद जारी ही था कि तभी 25 जून 1950 को उत्तर कोरिया के शासक किम इल संग ने चीन और सोवियत यूनियन की मदद से दक्षिण कोरिया पर पर हमला कर दिया. और यहीं से शुरू हुआ कोरियाई युद्ध. इस युद्ध में सोवियत यूनियन उत्तर कोरिया की तरफ था तो अमेरिका दक्षिण कोरिया की तरफ. तीन साल तक युद्ध चला जिसमें लाखों लोग मारे गए.
27 जुलाई 1953: युद्धविराम की घोषणा
तीन साल की लड़ाई के बाद आखिरकार कई देशों की मध्यस्था के बाद 27 जुलाई 1953 में दोनों देशों ने युद्धविराम की घोषणा कर दी. लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों में तनाव बना रहा. जो आज भी जारी है. दोनों देशों की सीमा को बिना सैनिक गश्त वाली महज़ ढाई मील की ये तारबंदी एक-दूसरे से अलग करती है. लेकिन इसके बावजूद इसे दुनिया के सबसे खौफनाक बार्डर के तौर पर जाना जाता है.