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आशीर्वाद बनाम सत्ता: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का सरकार को कड़ा संदेश

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य Swami Avimukteshwaranand काशी स्थित मठ में वेद विद्या से जुड़े कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने वाराणसी में साधु-संतों को नगर निगम द्वारा भेजे गए नोटिसों पर तीखी आपत्ति जताते हुए सत्ता और संत समाज के रिश्ते पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया।

शंकराचार्य ने साफ शब्दों में कहा कि सत्ता को मिला आशीर्वाद अनंत नहीं होता। अगर गलत हाथों को आशीर्वाद दिया गया तो परिणाम भोगना ही पड़ता है। उन्होंने भस्मासुर की कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि जिनसे आशीर्वाद लेकर सत्ता मिली, उन्हीं पर कार्रवाई करना उसी भस्मासुर प्रवृत्ति का उदाहरण है।

उन्होंने दो टूक कहा कि संत समाज चुप बैठने वाला नहीं है। सनातनी समाज जहां खड़ा होगा, वहां वे स्वयं खड़े नजर आएंगे। शंकराचार्य ने घोषणा की कि 10–11 मार्च को दिल्ली में एक बड़ा संत सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें ‘आशीर्वाद वापसी’ जैसे गंभीर विषय पर विचार होगा—जैसे राजनीतिक दल समर्थन वापस लेते हैं, वैसे ही संत समाज भी निर्णय कर सकता है।

मनरेगा के नाम में बदलाव पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि योजनाओं का नाम किसी के भी नाम पर हो, उन्हें आपत्ति नहीं, लेकिन ‘तीर्थ’ जैसे पवित्र शब्दों का उपयोग सरकारी कार्यालयों या योजनाओं के लिए स्वीकार्य नहीं है।

वृंदावन स्थित Banke Bihari Temple में बाल भोग में देरी पर शंकराचार्य ने चेताया कि यह परंपराओं के टूटने की शुरुआत है। उनका कहना था कि धर्मस्थलों का संचालन धार्मिक परंपराओं को जीने वाले लोगों के हाथ में ही होना चाहिए। सरकारी व्यवस्था धर्मनिरपेक्ष होती है, इसलिए उनसे ऐसी भूलें बार-बार होंगी। उन्होंने मौजूदा प्रक्रियाओं को निरस्त करने की मांग भी की।

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