छत्तीसगढ़धर्म

छत्तीसगढ़ का इकलौता भगवान अयप्पा का मंदिर

रायपुर।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की टाटीबंध रिंग रोड नं. दो के किनारे छत्तीसगढ़ का इकलौता भगवान अयप्पा का मंदिर है। लगभग 35 साल पुराने मंदिर में केरल की तर्ज पर ही पूजा की सभी परंपराएं निभाई जाती हैं। जिस तरह केरल के सबरीमाला मंदिर में साल में दो मर्तबा मंदिर की पवित्र सीढ़ियां खुलती हैं, उसी तरह टाटीबंध के मंदिर में भी दो ही दिन पवित्र सीढ़ियां खोली जाती हैं।

इन सीढ़ियों से चढ़कर भगवान के दर्शन का लाभ केवल उन्हीं भक्तों को मिलता है, जो 41 दिनों की कठोर तपस्या करते हैं। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां साल के बाकी दिनों में भगवान के दर्शन का लाभ मंदिर के पीछे बनी सीढ़ियों से ऊपर जाकर किया जाता है।

साहू समाज के शख्स ने की भूमि दान

राजधानी का प्रमुख टाटीबंध चौराहा कुछ सालों पहले तक एक गांव हुआ करता था, जो अब शहर का प्रमुख प्रसिद्ध क्षेत्र कहलाता है। इसी टाटीबंध गांव के झगरराम सीताराम वल्द हरीराम साहू ने स्व.पचकौड़ मंडल साहू की स्मृति में करीब दो एकड़ जमीन मंदिर बनवाने दान में दी थी।

श्री अयप्पा सेवा संघ के अध्यक्ष विनोद पिल्लई ने बताया कि 1980 के दौर में दक्षिण भारत से आए हुए समाज के बुजुर्गों ने भगवान अयप्पा का मंदिर बनवाना चाहा। गांव के साहू परिवार ने मंदिर बनवाने के लिए जमीन दान में दी। बुजुर्गों ने भगवान अयप्पा का छायाचित्र एक छोटे से शेड में स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

इसके बाद समाज के सहयोग से छोटा सा मंदिर बनवाया गया। मंदिर ट्रस्ट की स्थापना करके 1982 में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। केरल स्थित प्रसिद्ध मंदिर से विद्वान पुजारी पूजा संपन्न करवाने आए थे। आज भी केरल के मंदिर की तरह ही पूजा-पद्धति अपनाई जाती है।

18 पवित्र सीढ़ियों का महत्व

एक मर्तबा मंदिर में मंडल पूजा उत्सव और दूसरी मर्तबा कर संक्रांति के दिन 18 पवित्र सीढ़ियां खोली जाती हैं। इन सीढ़ियों से जाने के लिए श्रद्धालुओं को 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन, व्रत और विविध नियमों का पालन करना पड़ता है। ऐसे श्रद्धालुओं के नाम मंदिर समिति के समक्ष लिखवाना पड़ता है।

पहली पांच सीढ़ियां हैं पांच इन्द्रियां

पहली पांच सीढ़ियां मनुष्य की पांच इन्द्रियों से संबंधित हैं। इसके बाद वाली आठ सीढ़ियां मानवीय भावनाओं, फिर तीन सीढ़ियां मानवीय गुण और अंतिम दो सीढ़ियां ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक हैं।

सिर पर पोटली रख आते हैं व्रतधारी

गर्भ गृह में विराजित शनिश्वर भगवान अयप्पा का दर्शन करने के लिए 41 दिनों का व्रत, नियमों का पालन करके जिन्हें सीढ़ियों से आने की अनुमति मिलती है, वे श्रद्घालु सिर पर पोटली रखकर आते हैं। पोटली में भगवान को अर्पित की जाने वाली मिठाई होती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर पोटली रखकर जो भी श्रद्धालु आता है, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

नौ ग्रह मंदिर

भगवान अयप्पा के अलावा मंदिर के नीचे नौ ग्रह मंदिर स्थापित है। यहां हर साल 19 से 24 जनवरी तक तिरु उत्सवम मनाया जाता है। केरल से पुजारी पूजा संपन्न करवाने आते हैं।

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