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न्यायपालिका को बदनाम करने की साजिश, अवैध घुसपैठ पर सवाल जायज, रोहिंग्या विवाद में CJI सूर्यकांत के समर्थन में 44 पूर्व जज

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की रोहिंग्या शरणार्थियों पर टिप्पणी को लेकर मचे विवाद में अब 44 पूर्व जजों ने एकजुट होकर उनका समर्थन किया है। उन्होंने साझा बयान जारी कर CJI के खिलाफ चल रहे आलोचना अभियान को न्यायपालिका को बदनाम करने की चाल बताया है।

CJI ने रोहिंग्या शरणार्थियों की याचिका पर सुनवाई के दौरान सवाल उठाया था कि इन्हें शरणार्थी का दर्जा किसने दिया। उन्होंने कहा था, “पहले सुरंग खोदकर या बाड़ पार करके अवैध रूप से घुसते हैं, फिर खाना, पानी और पढ़ाई का हक मांगते हैं।” यह टिप्पणी डॉ. रीता मनचंदा की याचिका पर आई, जिसमें रोहिंग्याओं के कथित गायब होने का आरोप था।

44 पूर्व जजों ने बयान में स्पष्ट किया कि रोहिंग्या कानूनी रूप से शरणार्थी नहीं हैं, क्योंकि भारत ने UN Refugee Convention 1951 और 1967 प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए। उन्होंने चिंता जताई कि अवैध घुसपैठियों को आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज कैसे मिले — इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाली SIT को करनी चाहिए। पूर्व जजों ने कहा कि न्यायपालिका ने संविधान के दायरे में राष्ट्रीय सुरक्षा और मानव गरिमा का संतुलन बनाया है।

विपक्षी खेमे में कुछ पूर्व जजों, वकीलों और कार्यकर्ताओं ने CJI को पत्र लिखकर टिप्पणी को अमानवीय और संविधान-विरोधी बताया था। उनका तर्क था कि अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को जीवन का अधिकार देता है, और ऐसी भाषा न्यायपालिका की साख को ठेस पहुंचाती है। लेकिन समर्थक जजों ने इसे प्रेरित अभियान करार दिया।

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