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रायगढ़ में आठवें दिन: उत्तर और दक्षिण की नृत्य परंपराओं का अद्भुत संगम

रायपुर। रायगढ़ के चक्रधर समारोह के आठवें दिन की शाम कुछ खास रही, जब शास्त्रीय नृत्यों ने एक साथ आकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उत्तर भारत के कथक और दक्षिण भारत के भरतनाट्यम ने अपनी अलग-अलग सांस्कृतिक छाप के साथ समारोह को भक्तिमय और रंगीन बना दिया।

कथक की महारथी और गुरु संगीता कापसे ने अपनी शिष्यों के साथ कृष्ण भक्ति की गहराई को नृत्य के माध्यम से जीवंत कर दिया। तीनताल और झपताल की लय पर आधारित उनकी प्रस्तुति ने श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की मनमोहक कहानियों को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। गोकुल में कृष्ण के आगमन की खुशी, माखन चोरी के चंचल पलों से लेकर कालिया नाग को हराने तक का सजीव चित्रण दर्शकों के दिलों को छू गया। ‘कृष्ण सांवरिया’ के ये दृश्य भाव और लय के अनुपम संगम से सजाए गए थे, जो लोक और शास्त्रीय कला का बेहतरीन मेल थे।

वहीं, दक्षिण भारतीय नृत्य भरतनाट्यम की धुन पर रायपुर की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना अजीत कुमारी कुजूर और उनकी टीम ने प्राचीनतम परंपरा की जीवंत झलक पेश की। उनकी मनमोहक मुद्राएं, भाव-भंगिमा और तालबद्ध पदचालन ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। भरतनाट्यम की इस प्रस्तुति में न केवल दक्षिण भारत की सांस्कृतिक विरासत की झलक थी, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता का भी अनुपम संगम नजर आया।

अजीत कुमारी कुजूर, जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग और योग में स्नातकोत्तर हैं और जल संसाधन विभाग में उपअभियंता के रूप में कार्यरत हैं, ने साबित कर दिया कि कला और विज्ञान का संगम भी संभव है। उन्होंने नृत्य के जरिए दर्शाया कि समर्पण और लगन से पेशेवर जीवन के साथ-साथ कला की साधना को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है।

चक्रधर समारोह में दोनों नृत्यों की प्रस्तुतियों ने इस बात का प्रमाण दिया कि चाहे उत्तर भारत की कथक हो या दक्षिण का भरतनाट्यम, दोनों में छुपी है भारतीय सांस्कृतिक समृद्धि की गहराई और आध्यात्मिकता। कला प्रेमी इन रंगीन प्रस्तुतियों को देख कर मंत्रमुग्ध हुए और एक बार फिर भारतीय शास्त्रीय नृत्य की महिमा का अनुभव किया।

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