मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: शहरीकरण का तर्क अस्थिर, आयोग की प्रक्रिया पर उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर निर्वाचन आयोग की दलीलों पर गंभीर सवाल खड़े हुए। अदालत को बताया गया कि आयोग द्वारा राज्यों में चल रहे SIR के पीछे दिए गए कारण—जैसे तेजी से शहरीकरण और निरंतर प्रवास—मजबूत कानूनी आधार नहीं रखते। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव आयोग को किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में संशोधन का अधिकार है, पर इसका मतलब यह नहीं कि वह पूरे देश में एक साथ ऐसा कर सके।
सुनवाई के अंतिम पलों में अदालत ने वकील प्रशांत भूषण की उस टिप्पणी पर कड़ा रुख दिखाया, जिसमें उन्होंने आयोग को ‘निरंकुश’ बताया था।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के सामने वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जमकर तर्क रखे। लगातार तीसरे दिन हो रही सुनवाई में उन्होंने कहा कि SIR का आधार स्पष्ट और क्षेत्र-विशेष होना चाहिए, न कि एक सामान्य दावा। उन्होंने सवाल उठाया कि शहरीकरण जैसी धीमी और वर्षों से चल रही प्रक्रिया को आखिर अचानक गहन संशोधन का कारण कैसे माना जा सकता है।
प्रशांत भूषण ने इस कदम को ‘अभूतपूर्व’ बताते हुए आरोप लगाया कि पहली बार मतदाता सूची को पूरी तरह नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। उन्होंने SIR की जल्दबाजी पर सवाल उठाए और ब्लॉक लेवल अधिकारियों (BLO) पर बढ़ते दबाव को चिंताजनक बताया। भूषण ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि विशेष पुनरीक्षण के बाद भी 5 लाख से अधिक डुप्लीकेट वोटर सूची में मौजूद हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने भूषण से आग्रह किया कि वे बहस को केवल कानूनी दलीलों तक सीमित रखें और व्यापक आरोपों से बचें।
सिंघवी ने नियमों का हवाला देकर कहा कि ‘किसी भी निर्वाचन क्षेत्र’ का मतलब ‘सभी निर्वाचन क्षेत्र’ नहीं होता, और आयोग प्रशासनिक सुविधा के नाम पर गहन संशोधन लागू नहीं कर सकता। उन्होंने इसे कानून का गंभीर उल्लंघन बताया।
वकील अश्विनी उपाध्याय ने पश्चिम बंगाल में BLO पर हुए कथित हमलों की ओर ध्यान दिलाया, जिस पर अदालत ने कहा कि अधिकारी इस पर ध्यान देंगे।
अब यह मामला 4 दिसंबर को फिर से सुना जाएगा, जब भूषण अपनी दलीलें जारी रखेंगे।



