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‘पति जैसा साथ’ मान लिया, तो फिर दुष्कर्म कैसे? हाई कोर्ट का अहम फैसला

रायपुर। रायगढ़ की एक महिला की तरफ से दर्ज कराए गए दुष्कर्म के एक मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि एक बालिग महिला लंबे समय तक किसी पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रहती है, उसे पति के रूप में स्वीकार करती है, और सामाजिक दस्तावेज़ों में भी खुद को उसकी पत्नी के तौर पर दर्ज कराती है — तो ऐसे रिश्ते को ‘झांसे में बनाए गए यौन संबंध’ नहीं माना जा सकता।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली पीठ ने रायगढ़ फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी युवक को राहत दी है। ट्रायल कोर्ट ने पहले उसे धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत दोषी करार दिया था।

क्या था मामला?

महिला ने 2008 में रायगढ़ के चक्रधर नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। उसका आरोप था कि एक युवक ने उससे शादी का वादा कर लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए और बाद में उसे छोड़कर चला गया। दोनों की मुलाकात तब हुई जब महिला बिलासपुर में एक एनजीओ में काम करती थी। युवक ने महिला के शराबी पति से छुटकारा दिलाने और खुद शादी करने का वादा किया। उसने उसे किराये का घर दिलवाया, साथ रहने लगा और दोनों के तीन बच्चे भी हुए।

लेकिन 2019 में युवक रायपुर चला गया और वापस नहीं लौटा। जब महिला ने दबाव बनाया, तो उसने साथ आने से इनकार कर दिया। इसी के बाद महिला ने दुष्कर्म का केस दर्ज कराया।

क्यों पलटा हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला?

हाई कोर्ट ने इस मामले की गहराई से जांच की। सामने आया कि महिला ने आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड, बैंक अकाउंट समेत कई दस्तावेजों में खुद को आरोपी की पत्नी बताया था। यहां तक कि महिला बाल विकास विभाग के सखी वन स्टॉप सेंटर में भी उसने युवक को पति के रूप में स्वीकार किया।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जब दोनों बालिग हों, और महिला स्वयं किसी व्यक्ति को पति की तरह स्वीकार करती रही हो, तो इसे झांसे में बनाया गया रिश्ता नहीं माना जा सकता।

अंतिम फैसला

चीफ जस्टिस सिन्हा ने कहा, “जब एक महिला लंबे समय तक एक पुरुष के साथ वैवाहिक संबंध जैसा जीवन जीती है, उसे पति की तरह प्रस्तुत करती है और उससे तीन बच्चे होते हैं, तो इसे दुष्कर्म कहना न्यायसंगत नहीं है।”

इसके साथ ही हाई कोर्ट ने 3 जुलाई 2021 को फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा दिए गए दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया।

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