विधानसभा सत्र में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का विस्तृत वक्तव्य पढ़िये, कैसे प्रक्रिया से लेकर नीति तक उठाए गंभीर सवाल

छत्तीसगढ़ विधानसभा के सत्र के दौरान पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक अजय चंद्राकर ने नियम–कानून, चर्चा की प्रक्रिया, विजन डॉक्यूमेंट और राज्य की नीतियों को लेकर क्रमबद्ध और विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने शुरुआत में विधानसभा अध्यक्ष को बधाई दी और मंत्री से “ओपन माइंड” होकर बात सुनने की अपील की।
चर्चा की प्रक्रिया पर सवाल
अजय चंद्राकर ने सबसे पहले इस बात पर आपत्ति जताई कि नियमों में संशोधन और प्रेजेंटेशन से जुड़ी चर्चा किस प्रक्रिया के तहत हो रही है, यह स्पष्ट नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि यह साफ होना चाहिए था कि चर्चा किस प्रक्रिया में होगी, मंत्री अंत में उत्तर देंगे या नहीं, और सदस्य सुझाव देंगे या अपनी राय रखेंगे। उन्होंने इसे छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक नई परंपरा की शुरुआत बताते हुए अध्यक्ष से व्यवस्था स्पष्ट करने की मांग की।
मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री को बधाई
उन्होंने मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री को विजन डॉक्यूमेंट प्रस्तुत करने के लिए बधाई दी। चंद्राकर ने कहा कि विजन डॉक्यूमेंट एक मार्गदर्शक सिद्धांत होता है, जो यह बताता है कि सरकार किस दिशा में काम करना चाहती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी बातों को निराशावादी न समझा जाए, क्योंकि उद्देश्य सरकार को बेहतर ढंग से चलाने का है।
2047 के विजन पर आधार का सवाल
पूर्व मंत्री ने 2047 तक के दीर्घकालिक विजन की सराहना की, लेकिन पूछा कि इसकी बुनियाद आज कैसे रखी जा रही है। उन्होंने रूमी और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के उद्धरण देते हुए कहा कि सपने वही होते हैं जो सोने न दें, लेकिन सपनों को साकार करने के लिए ठोस आधार और स्पष्ट परिणाम चाहिए।
सामाजिक क्षेत्रों की अनदेखी का आरोप
चंद्राकर ने कहा कि ‘नवा अंजोर’ विजन डॉक्यूमेंट में सामाजिक क्षेत्रों में सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य को छुआ गया है। गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, कानून व्यवस्था, समाज कल्याण और रोजगार जैसे अहम मुद्दों पर स्पष्ट नीति नहीं दिखती। उन्होंने रोजगार की परिभाषा तय करने की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि यह आज तक स्पष्ट नहीं हो सकी है।
आर्थिक लक्ष्यों और वैश्विक हालात का जिक्र
उन्होंने 2047 तक 75 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को अनुमान बताया और कहा कि दुनिया युद्ध, महामंदी और अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रही है। ऐसे में केवल अनुमान के आधार पर लक्ष्य तय करना पर्याप्त नहीं है।
सिंचाई और कृषि पर तीखे सवाल
अजय चंद्राकर ने आर्थिक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि 2023-24 में सिंचाई का प्रतिशत 37% बताया गया था, जो 2024-25 में घटकर 34% हो गया। उन्होंने पूछा कि अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद सिंचाई का दायरा क्यों घटा।
उन्होंने यह भी कहा कि 25 साल में कृषि रकबा 1 लाख 60 हजार हेक्टेयर से अधिक कम हुआ है और 19 फसलों में से 16 में उत्पादन घटा है। इसके बावजूद कृषि योगदान बढ़ने के दावे किए जा रहे हैं।
एलाइड सेक्टर की कमजोर स्थिति
पूर्व मंत्री ने कहा कि अंडा, मछली और अन्य एलाइड सेक्टर में छत्तीसगढ़ आत्मनिर्भर नहीं है और राष्ट्रीय औसत से भी पीछे है। किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही जाती है, लेकिन एलाइड सेक्टर को मजबूत करने की ठोस नीति कहीं नजर नहीं आती।
जल संसाधन और सरफेस वाटर नीति
उन्होंने बस्तर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जैसे क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था पर सवाल उठाए और कहा कि सरफेस वाटर और ड्रिंकिंग वाटर को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, जबकि यह आज का बड़ा मुद्दा है।
बीज और पशुपालन पर चिंता
चंद्राकर ने पूछा कि क्या छत्तीसगढ़ बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर है, जबकि आज भी मध्य प्रदेश बीज महासंघ और राष्ट्रीय बीज निगम से बीज खरीदे जा रहे हैं।
पशुपालन पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि दुग्ध उत्पादन में छत्तीसगढ़ का योगदान मात्र 0.88% है। नस्ल सुधार, हाइब्रिड तकनीक और आईवीएफ जैसी आधुनिक विधियों पर राज्य में कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। पशु चिकित्सालयों की हालत भी उन्होंने “मरणासन” जैसी बताई।
ऑर्गेनिक खेती और वैश्विक प्रतिबंध
उन्होंने यूरोपीय यूनियन जैसे देशों द्वारा भारतीय उत्पादों पर लगाए गए प्रतिबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि जरूरत से ज्यादा फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड के उपयोग से ऑर्गेनिक खेती प्रभावित हो रही है। एलाइड सेक्टर के लिए उद्योग दर्जा देने की बात तो होती है, लेकिन नीति स्पष्ट नहीं है।
उद्योग नीति और ‘मेक इन छत्तीसगढ़’
अजय चंद्राकर ने उद्योग नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि बार-बार संशोधन हो रहे हैं, लेकिन ‘मेक इन छत्तीसगढ़’ कहीं नजर नहीं आता। उन्होंने साइकिल, मेडिकल उपकरण, रिएजेंट्स जैसे उदाहरण देते हुए कहा कि यदि इन्हें राज्य में बनाया जाए तो रोजगार और सहायक उद्योग दोनों विकसित हो सकते हैं।
कुटीर उद्योग और प्रशिक्षण
उन्होंने कुटीर और लघु उद्योगों के लिए फाइनेंस, कच्चा माल और प्रशिक्षण की नीति पर सवाल उठाए। बांस, बेल मेटल और स्वयं सहायता समूहों को उदाहरण के तौर पर रखते हुए कहा कि प्रशिक्षण तो दिया जाता है, लेकिन फाइनेंस और भरोसा नहीं मिलता।
कुल मिलाकर अपने लंबे और क्रमबद्ध वक्तव्य के अंत में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा कि आज तक छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए समग्र और स्पष्ट नीति नहीं बन पाई है। उन्होंने जोर दिया कि छोटे-छोटे निर्णय ही बूंद बनकर महासागर तैयार करते हैं और यदि राज्य को सच में आगे बढ़ाना है तो विजन के साथ ठोस नीति और जमीनी क्रियान्वयन जरूरी है।



