
जगदलपुर : बस्तर दशहरा पर्व के अंतिम 4 दिनों में पूरे शहर में बस्तर की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है। यही वो समय है जब बस्तर के प्रत्येक ग्राम के आदिवासी पूरी उत्साह व खुशी के साथ वर्ष भर जाम किये गये रूपयों को हाट बाजार में खर्च कर अपनी पसंद की सामग्रियां खरीदकर ले जाते हैं।
संजय मार्केट से लेकर टेकरी वाले हनुमान मंदिर तक सडक़ के दोनों किनारे आदिवासियों का हाट बाजार लगा हुआ है, जिसमें दैनिक उपयोग की वस्तुओं के साथ-साथ बस्तर आर्ट की वस्तुएं, लोहे के औजार, वाद्य यंत्र, अनेक उपयोगी रस्सियां व अन्य सामग्रियों की बिक्री जा रही है।
बस्तर दशहरा ही एक अवसर है जब न केवल ग्रामीणजन बल्कि शहरीजन भी ऐसी उपयोगी वस्तुएं खरीदते हैं जो वर्षभर नहीं मिल पाता। ग्रामीण महिला पुष्पा बताती है कि इस बाजार में लोहे की उपयोगी सामग्री चाकू, छुरी से लेकर पायली, छलनी, कुल्हाड़ी, खुरपी, खलबत्ता, लोहे की कुल्हाड़ी जैसे अन्य उपयोगी जो अन्य दिनों में उपलब्ध नहीं हो पाती, वे यहां से लोहे की कड़ाही खरीदकर ले जा रही थी। वहीं ओडि़सा से लोहे का सामान लेकर बिक्री करने आई कोटपाड़ की रामा बताती हैं कि वह विगत 30 वर्षों से यहां आ रही है।
बस्तर दशहरा पर्व के भीतर रैनी रस्म के पूर्व से लगे इस हाट बाजार में आदिवासियों द्वारा निर्मित दैनिक उपयोग की वस्तुएं ज्यादा हैं, जो बाकी दिन मिलती नहीं है। लोहे की सामग्रियोंं के अलावा बेलमेटल की कलाकृतियों से बाजार की लौह संस्कृति हाट बाजार की शोभा बढ़ा रहे हैं। ग्रामीणजन अपने परिवार सहित यहां दशहरा देखने आते हैं और परम्परा के अनुसार यहां से कुछ न कुछ सामग्री अवश्य खरीदकर ले जाते हैं।