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पद्मश्री हास्य कवि सुरेंद्र दुबे का निधन, हार्टअटैक के बाद एसीआई में ली अंतिम सांस, साहित्य जगत में शोक की लहर

रायपुर। छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश और विश्व में अपनी हास्य और व्यंग्य कविताओं से लोगों को हंसाने वाले पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन हो गया है। उन्हें दो दिन पहले हार्ट अटैक आया था, जिसके बाद रायपुर के मेकाहारा अस्पताल स्थित एसीआई सेंटर में उनका इलाज चल रहा था। बुधवार रात उन्होंने वहीं अंतिम सांस ली। पारिवारिक सूत्रों ने उनके निधन की पुष्टि की है। उनके निधन से साहित्य जगत, रंगमंच और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को गहरा आघात पहुंचा है।

राज्यभर में शोक, कलेक्टर और मंत्री पहुंचे अस्पताल

सुरेंद्र दुबे की निधन की खबर के बाद रायपुर कलेक्टर और छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री ओपी चौधरी एसीआई सेंटर पहुंचे और शोक जताया। उनके चाहने वालों और साहित्य प्रेमियों के बीच शोक की लहर दौड़ गई है।

व्यंग्य और हास्य का विलक्षण चेहरा थे सुरेंद्र दुबे

पद्मश्री सुरेंद्र दुबे सिर्फ एक कवि नहीं थे, वे मंचीय हास्य कविता के एक युग थे। अपने खास लहजे, तीखे व्यंग्य और हास्य के अंदाज में उन्होंने जीवन की गहरी बातों को भी सहजता से प्रस्तुत किया। उनका जन्म 8 जनवरी 1953 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के बेमेतरा में हुआ था। वे पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक थे, लेकिन उनकी पहचान एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के कवि के रूप में बनी।

टेलीविजन से लेकर किताबों तक, हर मंच पर थे लोकप्रिय

दुबे ने कई किताबें लिखीं और देशभर के कवि सम्मेलनों में शिरकत की। वे ‘व्‍यंग्‍य का डॉक्टर’ कहे जाते थे। वे दूरदर्शन, सहारा समय, एबीपी न्यूज जैसे कई चैनलों पर विशेष कवि सम्मेलनों में नज़र आते थे।
उनकी लोकप्रिय रचनाओं ने समाज, राजनीति और मानव व्यवहार पर करारा व्यंग्य किया, लेकिन शालीनता की सीमा कभी पार नहीं की। यही कारण है कि वे हर वर्ग और उम्र के लोगों के चहेते कवि बने रहे।

सम्मान और उपलब्धियां

2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा, जो देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।
2008 में काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा उन्होंने अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छत्तीसगढ़ और भारतीय हास्य साहित्य की पहचान को नई ऊंचाई दी।

अब नहीं गूंजेगी वो ठहाकों वाली कविता

सुरेंद्र दुबे की कविताएं केवल हंसी नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने का जरिया थीं। उनके शब्दों में गहरी बात होती थी, और अंदाज ऐसा कि हर कोई सुनते ही मुस्कुराने लगता था। उनका जाना न केवल साहित्य जगत की क्षति है, बल्कि हंसी और व्यंग्य की उस परंपरा का विराम भी है, जो मर्यादा और संवेदना के बीच सजीव रहती थी। Fourth Eye News परिवार की ओर से सुरेंद्र दुबे जी को विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी कविताएं, उनका हास्य और उनका साहित्य हमेशा जीवित रहेगा।

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