7 साल बाद चीन की धरती पर पीएम मोदी, गलवान विवाद के बाद कूटनीतिक रिश्तों में नया मोड़

लगभग सात वर्षों के अंतराल के बाद, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के दौरे पर जा रहे हैं। गलवान घाटी में 2020 की टकराव के बाद यह कदम दोनों देशों के रिश्तों में सुधार की दिशा में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी चीन पहुंचेंगे।
यह यात्रा इसलिए भी खास है क्योंकि मोदी जी की पिछली चीन यात्रा 2019 में हुई थी, जबकि 2024 के ब्रिक्स सम्मेलन में उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। इस बार की यात्रा को राजनीतिक जानकार बड़े कूटनीतिक कदम के तौर पर देख रहे हैं, जो दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और सहयोग बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है।
व्हाइट हाउस का नजरिया: “साफगोई और कूटनीतिक संवाद ज़रूरी”
व्हाइट हाउस के प्रिंसिपल डिप्टी प्रवक्ता टॉमी पिगॉट ने इस दौरे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “यह प्रशासन के लिए अपनी चिंताओं को पूरी तरह, साफ़ और स्पष्ट तरीके से बातचीत के ज़रिए उठाने का मौका है। राष्ट्रपति ने रूस के तेल आयात और व्यापार असंतुलन जैसी मुद्दों पर अपनी चिंताएं जताई हैं। हमें उन मुद्दों का समाधान निकालना है, और इसके लिए पूरी तरह कूटनीतिक संवाद जरूरी है।”
उनका मानना है कि अमेरिका के हितों को आगे बढ़ाने के लिए भागीदारों के साथ खुली बातचीत महत्वपूर्ण है।
चीन से भारत को समर्थन का संकेत
चीन ने भी इस मौके पर भारत के लिए सहमति जताई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि चीन ने टैरिफ के दुरुपयोग के खिलाफ हमेशा विरोध जताया है और भारत की संप्रभुता का सम्मान किया जाना चाहिए। यह बयान भारत के लिए सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
चीन से पहले जापान की मिट्टी पर मोदी
चीन दौरे से ठीक पहले, 30 अगस्त को पीएम मोदी जापान का दौरा करेंगे। वहां वे जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस दौरे को भी रणनीतिक और आर्थिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के दोनों दौरों को लेकर खूब उत्साह है और देशवासियों की उम्मीदें बढ़ रही हैं कि ये यात्राएं भारत की विदेश नीति में नए अध्याय की शुरुआत होंगी।