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प्रियंका गांधी की राजनीति में अधिकारिक एंट्री , बनी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव

प्रियंका गांधी की राजनीति में अधिकारिक तौर पर एंट्री भले ही आज हुई हो, लेकिन उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति के लिए प्रियंका कोई नया चेहरा नहीं हैं. उत्तर प्रदेश से प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग लगातार उठती रही हैं. कई बार कांग्रेस के बड़े नेता भी तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की मांग कर चुके हैं. बात करें उत्तर प्रदेश की तो प्रदेश की राजनीति के लिए प्रियंका का चेहर नया नहीं है, ख़ास तौर पर रायबरेली और अमेठी के लिए.

1999 में जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने अमेठी पहुंची तो उनके साथ प्रियंका और राहुल दोनों थे. आम लोगों को ये अंदाजा उसी दिन लग गया था कि गांधी परिवार के ये दोनों वारिश राजनीतिक में जरूर आएंगे. कुछ लोग जहां प्रियंका गांधी को कांग्रेस क राजनीति में आगे लाने की बात करे रहे थे तो कुछ राहुल गांधी में कांग्रेस का भविष्य देख रहे थे लेकिन 2004 में जब सोनिया गांधी परंपरागत अमेठी सीट राहुल को देकर खुद रायबरेली रुख किया तो एक बात साफ हो गई कि गांधी परिवार के असली वारिस राहुल गांधी हैं.

इसके बाद प्रियंका गांधी की जिम्मेदारियां कम होने की बजाय और बढ़ गई. जैसे-जैसे मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी राजनीति की सीढ़ी आगे चढ़ते गए प्रियंका ने रायबरेली और अमेठी की जमीन पर वो सभी जिम्मेदारियां निभाईं, जो इन दोनों को निभानी चाहिए. 2004 और 2014 के लोकसभा चुनावों में जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी देश भर में कांग्रेस के लिए रैलियां कर रहे थे, तब प्रियंका चुपचाप अमेठी और रायबरेली में जमीन पर काम कर रही थी. 2014 के चुनावों में जब आम आदमी पार्टी ने कुमार विश्वास और बीजेपी ने स्मृति ईरानी के बहाने राहुल गांधी को अमेठी में घेरने की कोशिश की तो प्रियंका का ही करिश्मा रहा जो ये सीट बच पाई. रायबरेली और अमेठी की ऐसी बहुत कम तस्वीरें मिलेगी, जिसमें प्रियंका का चेहरा नहीं हो.

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