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कोरोना वायरस पर बड़ी रिसर्च का हिस्सा बना रायपुर एम्स, ठीक हो चुके रोगियों का प्लाज्मा किया इकट्ठा

रायपुर, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान देशभर में होने वाले प्लाज्मा थैरेपी के क्लिनिकल ट्रायल का भाग बन गया है। इसके माध्यम से आईसीएमआर द्वारा किए जा रहे वृहद स्तर के क्लिनिकल ट्रायल में रायपुर एम्स ने भी अपना अहम योगदान देना शुरू कर दिया है। पहले चरण में कोविड-19 के ठीक हो चुके रोगियों का प्लाज्मा कलेक्ट करना शुरू कर दिया गया है जिसे सुरक्षित रखकर बाद में गंभीर रोगियों को प्रदान किया जा सकेगा।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के निर्देशन में देशभर के चिकित्सा संस्थानों में कोवल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी का क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा है। इसी कड़ी में रायपुर एम्स भी पिछले तीन माह में 200 से अधिक रोगियों का इलाज करने के बाद इस ट्रायल का हिस्सा बन गया है। निदेशक प्रो. (डॉ.) नितिन एम. नागरकर ने बताया कि कोविड-19 के गंभीर रोगियों में इसके दुष्प्रभावों को रोकने के लिए रायपुर एम्स में प्लाज्मा थैरेपी का क्लिनिकल ट्रायल शुरू हो गया है।

पहले चरण में स्वस्थ हो चुके रोगियों का प्लाज्मा एकत्रित किया जा रहा है। इसके लिए ब्लड बैंक में सभी आवश्यक तैयारियां हो चुकी हैं। ठीक हो चुके कई रोगी भी स्वेच्छा से अपना प्लाज्मा देने को तैयार हैं। आईसीएमआर की गाइडलाइंस के मुताबिक इनका प्लाज्मा लिया जा रहा है। एक माह में एक प्लाज्मादाता 500 एमएल तक प्लाज्मा दे सकता है जिसे 200 एमएल के दो भाग में गंभीर कोविड-19 रोगियों को दिया जा सकता है। फिलहाल एक प्लाज्मादाता ने अपना प्लाज्मा दे दिया है।

दूसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के अंतर्गत इंटरवेंशन और कंट्रोल आर्म ग्रुप बनाए जाएंगे जिसमें इंटरवेंशन आर्म में शामिल रोगियों को 200 मिली का कोवल्सेंट प्लाज्मा दिया जाएगा जबकि कंट्रोल ग्रुप में सामान्य उपचार प्रदान किया जाएगा। इन रोगियों का एक, तीन, सात, 14 और 28 दिनों में प्रथम ट्रांसफ्यूजन के बाद परीक्षण किया जाएगा। इस डेटा को देशभर के संस्थानों से प्राप्त करने के बाद आईसीएमआर क्लिनिकल ट्रायल के परिणामों और प्रभावों का विश्लेषण करेगा। इस संबंध में एम्स निरंतर अन्य चिकित्सा संस्थानों के संपर्क में है जहां सफलतापूर्वक प्लाज्मा थैरेपी दी गई है।

इस प्रयोग में परखा जा रहा है कि एंटी सार्स कोव-2 प्लाज्मा का उपचार रोगियों पर सुरक्षित है या नहीं। प्रो. नागरकर का कहना है कि वर्तमान में कोविड-19 का कोई भी उपचार उपलब्ध नहीं है। प्रारंभिक शोध में प्लाज्मा थैरेपी को अधिक उपयुक्त माना जा रहा है। ऐसे में इसकी क्लिनिकल प्रमाणिकता को परख कर सुरक्षित पाए जाने पर इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा सकता है।

रिसर्च प्रोटोकॉल के अनुसार इस ट्रायल में उन रोगियों को शामिल किया गया है जो 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं और उनके रक्त से संबंधित डोनर प्लाज्मा उपलब्ध है। इसमें गर्भवती महिलाओं, स्तनपान करवा रही महिलाओं और किसी अन्य ट्रायल से संबंधित रोगियों को शामिल नहीं किया गया है। एम्स में वर्तमान में कोविड-19 के 200 से अधिक रोगियों का या तो उपचार किया जा रहा है या किया जा चुका है। ऐसे में इन रोगियों और उनके परिजनों की सहमति लेकर उन्हें क्लिनिकल ट्रायल का भाग बनाया जा रहा है।

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