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रायपुर : मैं श्रेष्ठ हूं ये अच्छा परंतु मैं ही श्रेष्ठ हूं ये अभिमान, इसे दूर करने पर ही मिलेंगे भगवान : पं. बृजेश

रायपुर : पुरुषोत्तम मास के पावन अवसर पर बूढ़ा तालाब स्थित बूढेश्वर मंदिर के सभा भवन में चल रही भागवत कथा के पांचवे दिन व्यासपीठ से पंडित बृजेश शरणदेव ने कृष्ण बाल लीला और ब्रह्म मोह प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने बताया कि मुनष्य में ऐसा भाव हो वो श्रेष्ठ हो तो उत्तम विचार है परंतु यदि वह यह सोचे कि मैं ही श्रेष्ठ हूं, तो यह अभिमान है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में सफलता नहीं मिल पाती। इसलिए मन में अहंकार रुपी बीज को नहीं पनपने देना चाहिए।

क्योंकि भगवान अपने भक्तों की हर परस्थिति में रक्षा करते हैं और अहंकार करने वाले का मान तोड़ देते हैं। भगवान की भक्ति में अहंकार की कोई जगह नहीं होती। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का अहंकार तोडऩे के लिए ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाई। इसके बाद इंद्र के क्रोध से गोपी और ग्वालों को बचाने के लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उंगली पर भी उठा लिया।

ब्रह्म मोह प्रसंग का सुंदर वर्णन किया

इससे पहले शुक्रवार को कथा की शुरुआत में पं. बृजेश शरणदेव ने पूतना वध प्रसंग की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि नंद जी के घर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खबर जब कंस को लगी, तो उसने क्षेत्र के सभी नवजात शिशुओं की हत्या करवाने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा। माता यशोदा से कृष्ण को लेने के लिए पूतना ने अपने मायाजाल से सुंदर युवती का रूप धारण किया। परंतु भगवान पूतना को पहचान गए। पूतना को कृष्ण से कोई स्नेह नहीं था, वह भगवान को मार डालना चाहती थी। फिर भी जाने-अनजाने उसने भगवान कृष्ण को स्तनपान करवाकर परमगति प्राप्त की।

सुंदर युवती का रूप धारण किया

इसके साथ ही उन्होंने यमलार्जुन मोक्ष के साथ बकासुर, अघासुर आदि राक्षसों के वध का वर्णन किया। कथा में आगे ब्रह्ममोह प्रसंग का वर्णन करते हुए पं. बृजेश शरणदेव ने बताया कि एक बार ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण की परीक्षा लेनी चाही। इसके लिए ब्रह्मा जी ने सभी बछड़ों और ग्वालों को एक वर्ष के लिए छुपा दिया। लेकिन इस बीच भगवान स्वयं उन गायों के बछड़े और ग्वालों के रूप में सभी जगह उपस्थित रहे। तब जाकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण के असली स्वरुप को पहचाना।

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