
रायपुर : भगवान अपने भक्तों की हर परस्थिति में रक्षा करते हैं और अहंकार करने वाले का मान तोड़ देते हैं। भगवान की भक्ति में अहंकार की कोई जगह नहीं होती। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का अहंकार तोडऩे के लिए ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाई। इसके बाद इंद्र के क्रोध से गोपी और ग्वालों को बचाने के लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उंगली पर भी उठा लिया। पुरुषोत्तम मास के पावन अवसर पर न्यू चंगोराभाठा के गणपति नगर में परमेश्वरी चौक पर शिवोम विद्यापीठ के पास श्रीगोपाल भवन में चल रही भागवत कथा में संतटीकमाचार्य जी के शिष्य और पुरानी बस्ती में गोपाल मंदिर के महंत गोपालशरण देवाचार्य जी ने कृष्ण बाल लीला और ब्रह्म मोह प्रसंग का सुंदर वर्णन किया।
इंद्र के क्रोध से गोपी और ग्वालों को बचाने के लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उंगली पर भी उठा लिया
इससे पहले रविवार को कथा की शुरुआत में गोपालशरण जी ने पूतना वध प्रसंग की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि नंद जी के घर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खबर जब कंस को लगी, तो उसने क्षेत्र के सभी नवजात शिशुओं की हत्या करवाने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा। माता यशोदा से कृष्ण को लेने के लिए पूतना ने अपने मायाजाल से सुंदर युवती का रूप धारण किया। परंतु भगवान पूतना को पहचान गए। पूतना को कृष्ण से कोई स्नेह नहीं था, वह भगवान को मार डालना चाहती थी। फिर भी जाने-अनजाने उसने भगवान कृष्ण को स्तनपान करवाकर परमगति प्राप्त की। इसके साथ ही उन्होंने यमलार्जुन मोक्ष के साथ बकासुर, अघासुर आदि राक्षसों के वध का वर्णन किया।
उन्होंने बताया कि नंद जी के घर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खबर जब कंस को लगी
कथा में आगे ब्रह्ममोह प्रसंग का वर्णन करते हुए गोपालशरण ने बताया कि एक बार ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण की परीक्षा लेनी चाही। इसके लिए ब्रह्मा जी ने सभी बछड़ों और ग्वालों को एक वर्ष के लिए छुपा दिया। लेकिन इस बीच भगवान स्वयं उन गायों के बछड़े और ग्वालों के रूप में सभी जगह उपस्थित रहे। तब जाकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण के असली स्वरुप को पहचाना।
भगवान को लगाया गया 56 भोग
इसके बाद भगवान की सुंदर बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए गोपालशरण जी ने बताया कि जब कृष्ण जी ने बृजवासियों को इंद्रदेव की जगह सूर्य भगवान की पूजा करने को कहा, तो अंहकार से भरे हुए इंद्र देव क्रोधित हो गए। अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने बृज में घनघोर वर्षा करवाई। ऐसे में इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने सात वर्ष की अवस्था में गिरिराज गोवर्धन को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर बृजवासियों की रक्षा की और इंद्र के अहंकार को नष्ट किया। इसके बाद बृजवासियों ने भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाकर गोवर्धन पर्वत की भी पूजा की। इसी प्रसंग के साथ ही कथा के दौरान गोपाल मंदिर में भगवान को 56 भोग लगाया गया। कथा के दौरान उमेश व्यास, प्रवीणा व्यास, रुपाली व्यास, मनीष मिश्रा आदि उपस्थित रहे।