कृष्ण का अनोखा प्रेम और विवाह की अद्भुत गाथा

भगवान श्रीकृष्ण का नाम सुनते ही प्रेम, भक्ति और अद्भुत कथाएँ हमारे मन में उमड़ने लगती हैं। वे राधा के अनमोल प्रेमी थे, जिनसे विवाह न कर पाने का दुःख उनके जीवन की एक अनकही दास्तां है। लेकिन कृष्ण की प्रेम कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। वे अपने समय के सबसे विचित्र और बहुपक्षीय विवाहों के भी नायक थे।
पहले तो कृष्ण ने आठ राजकुमारियों से विवाह किया — रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिंदी, सत्या, मित्रविंदा, भद्रा और मद्र की राजकुमारी। ये आठ नाम पौराणिक ग्रंथों और इतिहास में बड़ी श्रद्धा से गिनाए जाते हैं। पर ये आठ विवाह केवल शुरुआत थे।
दरअसल, कृष्ण ने एक अद्भुत और अनोखी परंपरा को जन्म दिया — उन्होंने 16,100 से अधिक कन्याओं से विवाह किया! कैसे? क्यों? इसकी कथा भी कम दिलचस्प नहीं।
नरकासुर की दहशत और कृष्ण की रक्षा
कहानी में प्रवेश करते हैं नरकासुर नामक राक्षस की, जिसने अपनी मायावी शक्तियों से देवताओं और ऋषियों की रक्षा को चुनौती दी थी। उसने अनेक राजकुमारियों और ऋषियों की पत्नियों को बंदी बना लिया था। उनकी मुक्ति के लिए देवता कृष्ण के पास पहुँचे।
नरकासुर को मारना था, पर एक शाप के कारण केवल स्त्री के हाथ से ही उसका वध संभव था। कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और नरकासुर का वध करवाया। तब सब बंदी कन्याएँ मुक्त हुईं, लेकिन समाज ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।
अनकहे रिश्तों को नया नाम — 16,100 विवाह
ये कन्याएँ जब अपने घर लौटीं तो उन्हें समाज ने अपमानित किया। तब उन्होंने कृष्ण से आश्रय माँगा। कृष्ण ने प्रेम का विस्तार करते हुए 16,100 रूपों में प्रकट होकर उन सभी से विवाह किया। शास्त्रों में इन्हें ‘पटरानियाँ’ कहा गया है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, कृष्ण ने सभी से शाब्दिक विवाह नहीं किया, पर सभी ने उन्हें पति के रूप में स्वीकार किया। कृष्ण ने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया और सभी को बराबर प्रेम दिया।
कृष्ण के अद्भुत परिवार
ऐसे कहा जाता है कि उनके 1,61,080 पुत्र थे, हर पत्नी के दस पुत्र और एक पुत्री। एक ऐसे व्यक्ति का परिवार, जो इतिहास और मिथकों के बीच एक प्रेम और न्याय की मिसाल बना।
कृष्ण की यह गाथा हमें सिखाती है कि प्रेम की कोई सीमा नहीं होती, और समाज के बंधनों से ऊपर उठकर इंसानियत और न्याय के लिए हमेशा लड़ना चाहिए।