उमा ने गंगाजल रखकर कसम दिलाई थी, कहा था जब कहूं तब छोड़ देना सीएम पद, पर हुआ कुछ यूं

भोपाल. राजधानी के सबसे लोकप्रिय नेता बाबूलाल गौर का बुधवार सुबह निधन हो गया है। गौर के मुख्यमंत्री बनने का किस्सा भी रोचक भरा था। उन्हें उमा भारती ने अपनी जगह मुख्यमंत्री का पद संभालने को कहा था। साथ ही गंगाजल हाथ में रखकर यह कसम दिलाई थी कि जब कहूं तब सीएम की कुर्सी छोड़ देना। लेकिन, जब उमा ने उनसे इस्तीफा मांगा तो गौर ने साफ मना कर दिया था। उन्हें कसम याद दिलाई गई तो उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया था।
2003 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा भारी बहुमत से 10 साल बाद सत्ता में लौटी। उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। एक साल के अंदर ही उनके नाम कर्नाटक के हुबली शहर की अदालत से वॉरंट जारी हो गया। 10 साल पुराने मामले में उमा भारती को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर इस्तीफा देना पड़ा था। उमा ने बाबूलाल गौर को ये सोचते हुए मुख्यमंत्री बनवाया कि वे जब कहेंगी गौर त्यागपत्र दे देंगे।
उमा भारती मानती थी कि बाबूलाल गौर का भोपाल से बाहर आधार नहीं है। गौर भाजपा में अपनी उपेक्षा से उस समय काफी आहत भी रहते थे। वे कई बार मीटिंग तक में नहीं जाते थे। ये भी कहा जाता है कि उमा ने गौर को इसलिए भी सीएम बनाने राजी हो गई थी, क्योंकि वे पिछड़ी जाति के थे। राज्यपाल बलराम जाखड़ ने 23 अगस्त 2004 को बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई।
कुछ समय बाद कोर्ट ने उमा भारती का मामला खारिज कर दिया। इसके बाद उमा ने गौर से इस्तीफा देने कहा। गौर ने मना कर दिया। तब उमा ने गौर को अपनी कसम याद दिलाई तो गौर ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि भाजपा में शक्ति परीक्षण की स्थिति बन गई।
मुख्यमंत्री बनने के 3 महीने बाद हुई थी बेटे की मौत
बाबूलाल गौर दो बेटियों और एक बेटे के पिता थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद गौर श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री निवास में शिफ्ट हुए। तीसरे महीने में ही उनके इकलौते बेटे पुरुषोत्तम गौर की हार्ट अटैक से मौत हो गई। बेटे की अंत्येष्टि के बाद बाबूलाल गौर श्मशान घाट पर ही फूट-फूटकर रोने लगे। अंत्येष्टि के बाद गौर घर नहीं लौटे। कुछ दिनों बाद उन्होंने बेटे की पत्नी कृष्णा गौर को पर्यटन निगम का अध्यक्ष बना दिया। पार्टी में ही इसका विरोध हुआ। नतीजतन कृष्णा को 13 दिन में पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद कृष्णा गौर भोपाल के महापौर का चुनाव जीतीं। 2018 के विधानसभा चुनाव में वह गोविंदपुरा सीट से विधायक बनीं।
भाजपा ने बैठा दिया था घर
जून 2016 में भाजपा आलाकमान ने बाबूलाल गौर से मंत्री पद छोड़ने को कहा। कहा गया कि वे 86 साल के हो गए हैं। गौर पार्टी के इस निर्णय से स्तब्ध और दुखी थे। विधानसभा चुनाव में भाजपा ना तो उन्हें टिकट देना चाहती थी ना उनकी पुत्रबधू कृष्णा को। गौर ने बगाबती तेवर अपना लिए। गौर ने जमकर पार्टी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी। आखिरकार पार्टी ने कृष्णा गौर को टिकट दे दिया।