ट्रंप टैरिफ दबाव के बीच रूस का ये फैसला, ट्रंप के कान खड़े कर देगा, भारत को मिलेगा…
रूस और भारत के ऊर्जा व्यापार में नया मोड़

रूस और भारत के ऊर्जा व्यापार में नया मोड़ आ गया है। ट्रम्प प्रशासन के कड़े टैरिफ दबावों के बावजूद भारत ने रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद जारी रखी है, जिससे अमेरिका को कड़ी चुनौती मिल रही है। हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस ने भारत को दिए जाने वाले crude oil पर छूट बढ़ाकर 3-4 डॉलर प्रति बैरल कर दी है, जो पहले जुलाई में 1 डॉलर और पिछले सप्ताह 2.50 डॉलर थी। नई दरें सितंबर और अक्टूबर के लिए लागू होंगी, जिससे भारतीय रिफाइनरियों को बड़ा फायदा मिलेगा ।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया, ताकि रूस से तेल खरीदने और यूक्रेन युद्ध के वित्तपोषण को लेकर भारत पर दबाव बनाया जा सके। लेकिन भारत ने इन धमकियों को अनदेखा कर ऊर्जा सहयोग जारी रखा है ।
यूक्रेन-रूस युद्ध की शुरुआत के बाद से भारत रूस से तेल खरीदने वाला सबसे बड़ा ग्राहक बन चुका है। 2022 से पहले भारत केवल 1% रूसी तेल खरीदता था, लेकिन अब यह आंकड़ा 2024-25 में 36-40% तक पहुंच गया है। भारत प्रतिदिन लगभग 5.4 मिलियन बैरल तेल आयात करता है, जिसमें से सबसे बड़ा हिस्सा अब रूस से आता है। भारत ने ईराक, सऊदी अरब, यूएई और अमेरिका जैसे बड़े तेल निर्यातकों को भी पीछे छोड़ दिया है।
व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने भारत की आलोचना की और कहा कि भारत रूस से तेल खरीदकर उसकी युद्ध मशीन को मजबूत कर रहा है। उनका कहना है कि भारत अब सस्ता तेल खरीदता है, उसे रिफाइन कर यूरोप, अफ्रीका और एशिया में मुनाफे पर बेचता है, जिससे रूस को आर्थिक मदद मिलती है ।
भारत ने स्पष्ट किया है कि रूस के साथ उसका ऊर्जा व्यापार पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत है, और किसी भी प्रतिबंध से वह प्रभावित नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन में भी रूस के साथ ‘विशेष संबंध’ पर जोर दिया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी गठजोड़ करते हुए भारत ने संकेत दिया कि अमेरिका की आलोचनाओं के बावजूद वह अपनी ऊर्जा नीति में बदलाव नहीं करेगा।
कुल मिलाकर, ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति भारत की ऊर्जा रणनीति को रोकने में नाकाम रही है, उल्टा इससे रूस और भारत का संबंध और मजबूत हुआ है। अमेरिकी चिंता बढ़ रही है कि भारत की यह नीति भविष्य में वैश्विक राजनीति और ऊर्जा बाज़ार को नया आकार दे सकती है



