नई वीज़ा नीति: ट्रंप का भारतीय आईटी पेशेवरों पर बड़ा वार

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आईटी और तकनीकी पेशेवरों को एक बड़ा झटका दिया है। ट्रंप ने एक नई नीति के तहत H-1B वीज़ा फीस को वार्षिक $100,000 तक बढ़ाने की घोषणा की है, जिससे अमेरिका में काम कर रहे लाखों भारतीय कामगारों पर सीधा असर पड़ सकता है।
क्या है नया नियम?
व्हाइट हाउस स्टाफ सचिव विल शार्फ ने कहा कि H-1B वीज़ा का “सबसे ज़्यादा दुरुपयोग” हो रहा है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि अब केवल “असाधारण और अत्यधिक कुशल” लोग ही इस वीज़ा के योग्य होंगे। उनका तर्क है कि यह कदम अमेरिकी कामगारों की नौकरियों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
भारत पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर
H-1B वीज़ा धारकों में सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय पेशेवरों का है, जो अमेरिका के आईटी और तकनीकी सेक्टर में काम करते हैं। यह वीज़ा आमतौर पर तीन साल के लिए जारी होता है और तीन साल तक रिन्यू भी किया जा सकता है। लेकिन अब नए शुल्क के चलते भारतीय कंपनियों और कर्मचारियों पर आर्थिक दबाव बढ़ने वाला है।
ग्रीन कार्ड और आय पर भी सख्ती
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि हर साल करीब 2.8 लाख लोग रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड के ज़रिए अमेरिका आते हैं, जिनकी औसत आय $66,000 होती है। लुटनिक का आरोप है कि इनमें से कई सरकारी संसाधनों पर बोझ बनते हैं। अब ग्रीन कार्ड भी केवल “शीर्ष प्रतिभाओं” को ही मिलेगा।
ट्रंप का दावा
ओवल ऑफिस में हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने कहा, “हमें सर्वश्रेष्ठ लोगों की जरूरत है। यह फैसला सुनिश्चित करेगा कि अमेरिका में सिर्फ सबसे योग्य लोग ही आएं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वीज़ा से मिलने वाला अतिरिक्त राजस्व करों में कटौती और राष्ट्रीय कर्ज चुकाने में इस्तेमाल किया जाएगा।



