
रायपुर। छत्तीसगढ़ की धरती पर शिक्षा ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार ने एक ऐसा काम कर दिखाया है, जो अब तक एक सपना माना जाता था—अब प्रदेश में कोई भी सरकारी स्कूल शिक्षक विहीन नहीं है।
एक समय था जब हजारों स्कूलों में या तो कोई शिक्षक नहीं था, या एक ही शिक्षक पूरे स्कूल का बोझ उठाता था। खासकर सुदूर आदिवासी अंचलों—सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर जैसे जिलों में बच्चों की पढ़ाई राम भरोसे थी। लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है।
राज्य सरकार द्वारा लागू की गई ‘युक्तियुक्तकरण’ नीति ने इस परिवर्तन की नींव रखी। इस नीति का उद्देश्य सिर्फ शिक्षकों का स्थानांतरण नहीं था, बल्कि यह एक गहरी सोच पर आधारित शिक्षा सुधार था—जहां हर स्कूल में जरूरत के हिसाब से शिक्षक हों, हर बच्चा बराबरी से सीख सके, और कोई गांव शिक्षा के उजाले से वंचित न रहे।
इस बदलाव की शुरुआत तीन स्तरों—जिला, संभाग और राज्य—पर की गई काउंसलिंग प्रक्रिया से हुई, जिसने शिक्षकों की तैनाती को न केवल पारदर्शी बनाया, बल्कि न्यायसंगत भी। इसका नतीजा यह रहा कि अब प्रदेश के किसी भी स्कूल में “शून्य शिक्षक” की स्थिति नहीं है। और हाई स्कूलों में तो सभी जगह न्यूनतम आवश्यक शिक्षक मौजूद हैं।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस उपलब्धि को “शिक्षा में न्याय की पुनर्स्थापना” कहा। उनका कहना है, “हमारा संकल्प है कि छत्तीसगढ़ का कोई भी बच्चा शिक्षक के बिना न पढ़े। यह केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं, यह समाज में समान अवसर की भावना को सशक्त करने वाला कदम है।”
सरकार अब अगला फोकस 1,207 ऐसे प्राथमिक स्कूलों पर कर रही है, जहां अभी भी केवल एक शिक्षक हैं। इनमें से सबसे अधिक स्कूल बस्तर, बीजापुर और सुकमा में हैं। इन शालाओं में जल्द ही नई नियुक्तियों और पदोन्नतियों के जरिये अतिरिक्त शिक्षकों की तैनाती की जाएगी।
इस पूरी प्रक्रिया ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो शिक्षा जैसी बुनियादी सेवा को भी हर कोने तक पहुंचाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ का यह कदम न केवल एक प्रशासनिक मॉडल है, बल्कि यह एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत है—जहां शिक्षा केवल अधिकार नहीं, एक सशक्त भविष्य की कुंजी है।