बदलता ड्रैगन: पाकिस्तान और सऊदी से चीन की बढ़ती दूरी

चीन की विदेश नीति में एक दिलचस्प मोड़ देखने को मिल रहा है। कभी ‘हर मौसम के दोस्त’ कहे जाने वाले पाकिस्तान से लेकर तेल के धनी सऊदी अरब तक — जिन देशों पर बीजिंग को सबसे ज्यादा भरोसा था, वही अब उसके रडार से गायब हो रहे हैं।
पाकिस्तान: दोस्ती की डोर ढीली
पाकिस्तान और चीन की दोस्ती कभी इतनी गहरी थी कि उसे “आयरन ब्रदर्स” कहा जाता था। अरबों डॉलर का निवेश, CPEC जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं, और हर मंच पर एक-दूसरे का साथ — लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है।
राजनीतिक अस्थिरता, आतंकी हमले और सुरक्षा खतरों ने चीन को डरा दिया है। ग्वादर पोर्ट वीरान है, ML-1 प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में, और बीजिंग का निवेश घट रहा है। चीन अब साफ संदेश दे रहा है — “सुरक्षा नहीं, तो पैसा नहीं!”
🇵🇰 से 🇺🇸 तक: पाकिस्तान का झुकाव
पाकिस्तान अब अमेरिका से रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहा है। एफ-16 के पुर्जों का सौदा और आर्थिक सहायता के संकेतों ने चीन को चौंका दिया है। बीजिंग की नीति साफ है — या पूरी तरह साथ रहो, या रास्ता अलग करो।
सऊदी अरब पर भी ठंडी नजर
अब वही सिलसिला सऊदी अरब के साथ भी। चीन ने सऊदी तेल की खरीद घटा दी है — लगातार दूसरे महीने। वजह सिर्फ मेंटेनेंस नहीं, बल्कि रणनीतिक बदलाव है। बीजिंग को लगता है कि रियाद फिर से वॉशिंगटन के पाले में जा रहा है।
इजरायल-हमास संघर्ष के दौरान सऊदी का “संतुलित रवैया” चीन को रास नहीं आया। अब ड्रैगन धीरे-धीरे तेल व्यापार रूस और ईरान की तरफ मोड़ रहा है।
भरोसे की दरार और भारत की बढ़त
पिछले साल चीन ने सऊदी और ईरान के बीच ऐतिहासिक समझौता करवाया था — लेकिन अब वही भरोसे की डोर कमजोर पड़ती दिख रही है।
भारत के लिए यह बदलाव किसी कूटनीतिक जीत से कम नहीं। पाकिस्तान और सऊदी — दोनों ही कभी भारत के खिलाफ चीन के साथ खड़े थे, लेकिन अब वही देश बीजिंग से दूर और नई दिल्ली से नज़दीक आ रहे हैं।
ड्रैगन की कूटनीति बदल रही है — “हर मौसम की दोस्ती” अब “सावधानी से निवेश” बन चुकी है।
चीन अब रणनीतिक मोर्चे पर नए समीकरण गढ़ रहा है, जबकि भारत चुपचाप अपनी जगह मज़बूत कर रहा है।



