जगदलपुर : बस्तर में आराध्य देवी के रूप में मां दंतेश्वरी को जन-जन में श्रद्धा के साथ पूजा जाता है और यहां पर सबसे पहले जलने वाली होली मां दंतेश्वरी को ही समर्पित होती है। इसके बाद ही मुख्यालय में इस जलने वाली होली की अग्नि से पुन: होलिका दहन किया जाता है। इस प्रकार यह पंरपरा वर्षो से जारी है और इस वर्ष भी यही परंपरा निभाई जाएगी। रंगों का त्यौहार होली का पर्व इस होलिका दहन के बाद ही मनाया जाता है और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े ही सौहाद्र पूर्वक एक दूसरे से मिलने तथा ढोलक मंजिरे के साथ नर्तक दल पूरे गांव में भ्रमण करने लगते हैं। उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल में जब बस्तर के तत्कालीन महाराजा पुरषोत्तम देव को रथपति की उपाधि प्राप्त हुई तो उसके बाद इनके मुख्यालय के पास ही स्थित माड़पाल ग्राम के आगमन पर ग्रामीणों ने उनका स्वागत करते हुये मां दंतेश्वरी की आराधना व पूजा के पश्चात मंड़ई का आयोजन किया तथा मंड़ई के पश्चात होलिका दहन भी किया। यह परंपरा उस समय से बस्तर में होली में चली आ रही है और इस माड़पाल की होलिका दहन के बाद वहां से लाई गई अग्नि से यहां पर होलिका दहन किया जाता है। पहले चूंकि बस्तर में आवागमन की कमी थी और सूचनाओं का आदान-प्रदान शीघ्रता से नहीं होता था तब लोग पूर्णिमा की रात के चंद्र को देखकर और अपनी गणना कर होलिका दहन का शुभ मुहूर्त निकालते थे। लेकिन अब समय की जानकारी सबको अपने हाथों में पहनी हुई घड़ी से प्राप्त हो जाती है। इसलिए अब निश्चित शुभ मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाता है। बस्तर में भी यह त्यौहार भाई-चारे तथा उल्लास के साथ रंगों के खेल के साथ मनाया जाता है। आज भी यह परंपरा बस्तर में भाई चारे के रूप में विद्यमान है।
Please comment