जगदलपुर, धरमपुरा मार्ग पर स्थित अजमेरी दरबार सांप्रदायिक सदभावना की अनूठी मिसाल है। बाबा के खादिमों की कमी नहीं है, जिनमें अधिसंख्य हिंदू संप्रदाय के हैं, जो विगत 10-12 सालों से निरंतर व निस्वार्थ अपनी सेवाएं दे रहे हैं। दरबार में अमीर-गरीब, हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई में कोई भेदभाव नहीं होता, बल्कि प्रत्येक दुखीजनों की मनोकामनाएं सुनी व परिपूर्ण की जाती हैं।
मुकेश सोनी, रवि माहेश्वरी एवं गणेश गुप्ता जैसे बाबा के अनन्य खादिम हैं, जो दरबार के लिए सामग्रियां जुटाकर उसे एक हज स्थल के रूप में सजाए हुए हैं। खादिम बताते हैं कि जहीर बाबा पर बंजारी वाले बाबा की सवारी आती है। बड़े से बड़े तथा शक्तिशाली भूत प्रेत भी अजमेरी दरबार में पनाह मांगने लगते हैं। मोर पंखों से निर्मित झाड़ू से बाबा डॉ जहीरूद्दीन पिशाचों की पिटायी कर उन्हें पीडि़त का शरीर छोडऩे विवश कर देते हैं। भूत प्रेत भगाने में बाबा का कोई सानी नहीं है।
शुल्क या चढ़ावा नहीं लिया जाता
इस दरबार में कोई चढ़ावा नहीं चढ़ाया जाता, न ही कोई शुल्क या राशि भेंट करनी पड़ती है, केवल चाम्र्स सिगरेट एवं इत्र की शीशी लेकर जाना पड़ता है। सामान्य जीवन में जहीर बाबा सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते, किंतु जब उन पर बाबा की सवारी आती है, तो बाबा एक बार में दस-दस सिगरेट पी जाते हैं। इस दरबार का चमत्कार कह लें या अतिशय लेकिन यह नितांत सत्य है कि जब बाबा सिगरेट का सेवन करते हैं, तब मौजूद मुरीदों को दरबार में उसके धुंए की बू महसूस ही नहीं होती।
मुफ्त बंटती है अंगूठियां एवं तावीज
दरबार में पीडि़त को तावीज, अंगूठी और चमत्कृत जल निशुल्क प्रदान किया जाता है। तावीज और अंगूठियां धारण करने से जहां ऊपरी बाधाओं एवं बाहरी हवाओं से निजात मिलती है, वहीं चमत्कृत जल के सेवन से कई असाध्य बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है।
सप्ताह में दो दिन लगता है दरबार
बाबा का दरबार पूर्णत: धार्मिक एवं परोपकारी है। यहां उल-जलूल मन्नतों को नहीं सुना जाता है, न ही कहने की इजाजत दी जाती है। पीडि़त और बीमार व्यक्ति ही अपनी फरियाद बाबा के समक्ष रख पाता है, जिसका निवारण बाबा करते हैं। आस्था विश्वास की तमन्ना लिए दरबार में नतमस्तक होने वाले दुखियारों की पीड़ायें अवश्य दूर होती हैं। सप्ताह में दो दिन गुरूवार एवं रविवार को बाबा का दरबार लगता हैं, जहां दुखियारों की भीड़ उमड़ी रहती है।
सुधीर जैन
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