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नईदिल्ली : मेक इन इंडिया की ड्यूटी, महंगे होंगे फोन?

नई दिल्ली , :  बजट में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए कस्टम्स ड्यूटी का दायरा बढ़ाया जा सकता है। इस कदम से इम्पोर्टेड हाई-ऐंड मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स महंगे हो सकते हैं। अभी इनमें इस्तेमाल होने वाले प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, कैमरा मॉड्यूल और डिस्प्ले पर ड्यूटी नहीं लगती। बजट में इन कंपोनेंट्स पर बेसिक कस्टम्स ड्यूटी लगाई जा सकती है।
इससे इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को लेकर समस्या का भी हल निकल सकता है। यह समस्या फिनिश्ड गुड्स पर उनमें लगने वाले कंपोनेंट्स की तुलना में कम ड्यूटी लगने से जुड़ी है। जीएसटी लागू होने के बाद केंद्र सरकार के बजट के दायरे में केवल कस्टम्स ड्यूटी बची है।
सरकार देश को केवल एक असेंबली हब के बजाए मैन्युफैक्चरिंग का बड़ा ठिकाना बनाना चाहती है। सरकार ने 1 जुलाई को मोबाइल फोन पर 10 प्रतिशत की बेसिक कस्टम्स ड्यूटी लगाई थी और 14 दिसंबर को इसे बढ़ाकर 15 प्रतिशत किया गया था। डिजिटल कैमरा, माइक्रोवेव अवन, टेलिविजन सेट और इम्पोर्टेड एलईडी लाइट पर भी कस्टम्स ड्यूटी बढ़ाई गई थी।
एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि इस बार ड्यूटी में बदलाव करने के दौरान कंपोनेंट्स पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। डिस्प्ले पैनल, कैमरा मॉड्यूल और अन्य पार्ट्स पर कस्टम्स ड्यूटी नहीं लगती। पिछले वर्ष के बजट में मोबाइल फोन, लैपटॉप और पर्सनल कंप्यूटर बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्रिंटेड सर्किट बोर्ड पर 2 प्रतिशत की स्पेशल अडिशनल ड्यूटी लगाई गई थी, लेकिन कुछ महीने बाद इसे हटा दिया गया था। अब इन कंपोनेंट्स पर 10 प्रतिशत तक की कस्टम्स ड्यूटी लग सकती है।
हालांकि, टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि विभिन्न देशों के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट के तहत कस्टम्स ड्यूटी पर छूट मिलने के कारण इस तरह के कदम का बड़ा असर होना मुश्किल है। भारत ने स्मार्टफोन और कुछ इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स पर कस्टम्स ड्यूटी लागू करने से पहले कानूनी सलाह ली थी। भारत का मानना था कि ये इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी अग्रीमेंट के तहत नहीं आते। ग्लोबल अग्रीमेंट के तहत इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के जीरो ड्यूटी पर इम्पोर्ट का प्रावधान है। भारत ने इस अग्रीमेंट पर 1996 में हस्ताक्षर किए थे।
दुनिया की कई बड़ी मोबाइल फोन कंपनियों ने तेजी से बढ़ती स्थानीय मार्केट की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत में प्लांट लगाए हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर असेंबली यूनिट हैं। सरकार चाहती है कि ये कंपनियां असेंबली के बजाय मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दें। इसके जरिए सरकार का मकसद इम्पोर्ट पर देश की निर्भरता कम करना है। भारत ने वित्त वर्ष 2017 में लगभग 42 अरब डॉलर के टेलिकॉम इंस्ट्रूमेंट, कंप्यूटर हार्डवेअर, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक गुड्स का इम्पोर्ट किया था।
 

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