कोरोना वायरस: हवा में फैलने वाला प्रसार बेहद संक्रामक – रिसर्च
नईदिल्ली, एक अध्ययन में दुनियाभर में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के तीन प्रमुख केंद्रों में विषाणु के प्रकोप का आंकलन किया गया है. जिसमें पाया गया है कि कोरोना वायरस का हवा के जरिए होने वाला प्रसार अत्यधिक संक्रामक इस बीमारी के फैलने का प्रमुख जरिया हो सकता है.
रसायन विज्ञान में 1995 का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले मारियो जे मोलिना समेत वैज्ञानिकों ने महामारी के तीन केंद्रों चीन के वुहान, अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर इटली में इस संक्रमण की प्रवृत्ति नियंत्रण के कदमों का आंकलन करके कोविड-19 के फैलने के मार्गों का आंकलन किया.
शोधकर्ताओं ने चिंता जताई कि विश्व स्वास्थ्य संगठन लंबे समय से केवल संपर्क में आने से होने वाले संक्रमण को रोकने पर जोर देता रहा है कोरोना वायरस के हवा के जरिए फैलने के तथ्य को नजरअंदाज करता रहा है.
एक अध्ययन के आधार पर उन्होंने कहा कि हवा से होने वाला प्रसार अत्यधिक संक्रामक है यह इस बीमारी के प्रसार का प्रमुख जरिया है. उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर नाक से सांस लेने से विषाणु वाले एरोसोल सांस लेने के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकते हैं.” सूक्ष्म ठोस कणों अथवा तरल बूंदों के हवा या किसी अन्य गैस में कोलाइड को एरोसोल कहा जाता है.
किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से पैदा होने वाले मनुष्य के बाल की मोटाई जितने आकार के एरोसोल्स में कई विषाणु होने की आशंका होती है. शोधकर्ताओं के अनुसार अमेरिका में लागू सामाजिक दूरी के नियम जैसे अन्य रोकथाम उपाय अपर्याप्त हैं. उन्होंने कहा कि हमारे अध्ययन से पता चलता है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी को रोकने में विश्व इसलिए नाकाम हुआ क्योंकि उसने हवा के जरिए विषाणु के फैलने की गंभीरता को पहचाना नहीं. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे पर मास्क लगाकर बीमारी को फैलने से रोकने में काफी मदद मिल सकती है.
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