अंतागढ़ विधानसभा का ताज क्या कांग्रेस 2023 की चुनाव में बचा पाएगी
नमस्कार दोस्तों फोर्थ आई न्यूज़ में आपका एक बार फिर स्वागत है, आज हम छत्तीसगढ़ की एक ऐसी विधानसभा सीट के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसका इतिहास बेहद दिलचस्प है, इसलिये आपसे निवेदन है कि इस रिपोर्ट आखिरी तक देखिये और हमें पूरा भरोसा है, कि इस रिपोर्ट को देखकर निश्चित रूप से आपकी जानकारी बढ़ जाएगी । आज हम बात कर रहे हैं अंतागढ़ विधानसभा की, इस विधानसभा का नाम पहले नारायणपुर विधानसभा था, तब से ही यहां नतीजा हमेशा रोचक रहा है। 1993 लेकर 2008 तक के चुनाव में भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच हमेशा कांटे की टक्कर रही है। इसके बाद साल 2008 में अंतागढ़ विधानसभा अलग हो गई। इसी साल यानि 2008 चुनाव में मामला इतना करीबी था कि गणना के बाद कांग्रेसियों ने अपनी जीत समझ उम्मीदवार को फूलमाला से लाद दिया था। लेकिन जब अधिकारिक नतीजे आए तो कांग्रेसियों के चेहरे पर घोर निराशा छा गई ।
साल 2008 में, अंतागढ़ विधान सभा क्षेत्र में कुल 134173 मतदाता थे। कुल वैध वोटों की संख्या 81218 रही। इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विक्रम उसेंडी जीते और विधायक बने। उन्हें कुल 37255 वोट मिले। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार मंतू राम पवार कुल 37146 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे । वे महज 109 वोटों से हारे ।
इसके बाद आया साल 2013, और इस बार अंतागढ़ विधान सभा क्षेत्र में कुल 146653 मतदाता थे। कुल वैध मतों की संख्या 113353 रही। इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विक्रम उसेंडी ने जीत दर्ज की और वे विधायक बने। उन्हें कुल 53477 वोट मिले। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार मंतूराम पवार कुल 48306 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। इस बार उनकी हार का मार्जिन बढ़कर 5171 हो गया था ।
अब आया वो साल जिसने छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया, इस सीट पर साल 2014 में उपचुनाव हुए, और इसके बाद सियासत दिल्ली तक गरमा गई थी । विक्रम उसेंडी के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में भाजपा ने भोजराज नाग को उतारा था, कांग्रेस ने मंतू पवार पर दांव खेला, लेकिन अंतिम समय में मंतू ने नाम वापस लेकर सबको चौंका दिया था। इसके बाद अकेले अंबेडकराइट पार्टी प्रत्याशी रूपधर पुड़ो को छोड़ बाकी निर्दलीय प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिए थे । मैदान में अकेले डटे पुड़ो व नाग के बीच मुकाबले में नाग 50 हजार से ज्यादा मतों से जीते थे । इस पूरे विवाद के बाद कांग्रेस में इतनी बड़ी उथल पुथल मची कि अजीत जोगी को मजबूर होकर कांग्रेस छोड़नी पड़ी और फिर वे अपनी पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरे ।
हालांकि अजीत जोगी के पार्टी से निकलने का फायदा भी कांग्रेस को मिला, साल 2018 में अंतागढ़ विधान सभा क्षेत्र में कुल 159630 मतदाता थे। कुल वैध मतों की संख्या 120061 थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार अनूप नाग जीते और इस सीट से विधायक बने । उन्हें कुल 57061 वोट मिले। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विक्रम उसेंडी कुल 43647 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। वह 13414 मतों से हार गए।
वैसे इस सीट पर खास बात ये भी है कि यहां जब जब कांग्रेस के मंतू पवार और भाजपा के विक्रम उसेंडी आमने-सामने हुए तब तब परिणाम काफी नजदीकी रहे। पहली बार 1993 विक्रम उसेंडी ने मंतू पवार को मात्र 316 वोटों से हराया, 1998 में मंतू पवार ने विक्रम उसेंडी को 634 वोटों से हराया, 2003 विक्रम उसेंडी ने मंतू पवार को 8814 वोटों से हराया, 2008 में विक्रम उसेंडी ने मात्र 109 वोटों से मंतू पवार को हराया, 2013 में विक्रम ने मंतू को 5171 वोटों से हराया।
हालांकि फिलहाल इस सीट पर पुलिस के रिटार्यड अधिकारी अनूप नाग विधायक हैं, लेकिन क्या इस बार ये सीट कांग्रेस के पास ही रहेगी, या फिर एक बार फिर यहां कमल खिलेगा।