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Chattisgarh के कोरिया जिले में स्थित वो राजमहल जिसकी डिजाइन महज 7000 रुपए में बन गई थी

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों, छत्तीसगढ़ में कई रियासतें हुईं हैं और जब-जब इन रियासतों और उनके राजपरिवारों का ज़िक्र किया जाता है तब कोरिया रियासत का ज़िक्र किये बिना बात अधूरी सी लगती है। आज हम आपको कोरिया रियासत के राजमहल के कुछ गूढ़ तत्वों से रूबरू करवाने जा रहे हैं।

कोरिया हमारे छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना जिला और प्राचीन रियासतों में शुमार है। यह क्षेत्र अपने ऐतिहासिक, धार्मिक व पुरातात्विक महत्त्व के लिए जाना जाता है। कोरिया का राजमहल आज हमारे प्रदेश का गौरव है। इसे कोरिया पैलेस के नाम से विश्वभर में जाना जाता है। आज हम आपको इसके इतिहास से मुखातिब करवाने जा रहे हैं। साल 1700 तक इस रियासत में आदिवासी राजाओं का शासन रहा। उनके अवसान के बाद कोरिया में कोल और चैहान शासक विराजमान हुए। फिर साल 1920 के उपरान्त यहाँ शिवमंगल सिंह के शाही परिवार से उनके सबसे बड़े बेटे रामानुज प्रताप सिंहदेव ने कोरिया रियासत की गद्दी संभाली।

रामनुजप्रताप सिंहदेव के ही शासनकाल में साल 1923 में कोरिया पैलेस की परिकल्पना की गई। उस समय छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। कोरिया पैलेस के डिज़ाइन के लिए अभियंताओं की तलाश शुरू हुई और यह तलाश अविभाजित छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से होते हुए महाराष्ट्र के नागपुर में खत्म हुई। नागपुर के इंजीनियर ने कोरिया महल के राजा रामनुजप्रताप सिंहदेव के सपने को साकार करने ज़िम्मा संभाला और 7 हजार रुपए में इस राजमहल का पूरा खाका तैयार कर दिया। इसके बाद तलाश शरू हुई निपुण कारीगरों की। अलग-अलग प्रांतों से अपने हुनर में दक्ष कारीगरों को कोरिया राजमहल के निर्माण में लगाया गया। आपको बता दें कि पहले राजपरिवार के सदस्य बैकुंठपुर स्थित धौराटीकरा में मिट्टी के बने घर में रहते थे

कोरिया का राजमहल का ज़मीनी भाग लगभग 5 वर्षों में साल 1930 में बनकर तैयार हुआ। इसके अगले साल 1931 में कोरिया राजमहल द्वारा हर स्कूल में दोपहर को नाश्ता देने का नियम बनाया गया था। साथ ही हिन्दुस्तान का पहला न्यूतम वेतन कानून बनाया गया। साल 1934 में महल निर्माण के दौरान भूकंप आया था, इसकी वजह से राजमहल में कुछ दरारें आई थीं लेकिन राजमहल में राजा के अलावा किसी और के आने जाने की अनुमति नही है इस कारण से राजमहल में भूकेप से आई दरार के पुख्ता प्रमाण नही दिये जा सकते है। महल के ऊपरी हिस्से की बात करें तो इसका निर्माण साल 1938 में पूरा हुआ। और आज़ादी के एक साल पहले यानी साल 1946 में यह महल पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया। उस ज़माने में महल के निर्माण में नीचे का खर्च तीन लाख और ऊपर का खर्च पांच लाख रुपए आया।

आपको बता दें कि जब इस महल का निर्माण हो रहा था उस समय प्रदेश भीषण अकाल से जूझ रहा था, लोगों के पास काम नहीं था, और काम था तो कीमत नहीं। बताया जाता है कि उस समय जिसे भी महल निर्माण की खबर मिलती थी वो यहाँ राजा के दरबार में चला आता था और उसकी काम की अर्ज़ी सुन ली जाती थी, महल में निपुण कारीगरों के अलावा कुछ ग्रामीणों को भी काम में लगाया गया जिन्हें काम की तलाश थी, मगर किसी को लौटाया नहीं गया।

इस राजमहल की विशेषताओं की बात करें तो इसके पूरे निर्माण प्रक्रिया में चुने का इस्तेमाल हुआ है। इसकी जुड़ाई इतनी मज़बूत है कि आज तक इसी पर पूरे राजमहल की बुनियाद टिकी है। राजपरिवार के नज़दीकी जानकार बताते हैं कि राजपरिवार ठंड के मौसम में राजमहल के ऊपरी हिस्से और गर्मी के दिनों में नीचे रहता था।

कोरिया राजमहल के निर्माण के साथ ही इसकी ख्याति पूरे देश में फ़ैल गई। इसके गौरव के मद्देनज़र मध्यप्रदेश शासन में साल 1983 में अपर जिलाध्यक्ष की पदस्थापना बैकुंठपुर में की गईं थी और इसे ही जिला मुख्यालय रखा गया। जिला गठन के पूर्व कोरिया जिला का क्षेत्र अविभाजित सरगुजा जिले में समाहित था। सरगुजा से विभाजित होने के बाद 25 मई साल 1998 को कोरिया ज़िले का गठन हुआ।

दोस्तों, आज भी यह राजमहल अपने गौरवशाली इतिहास के लिए दुनियाभर में प्रसिद्द है। मगर यहाँ राज करने वाले राजाओं की वर्तमान पीढ़ी और उनका जनता के साथ कितना सरोकार है इसपर अब भी संशय है। स्थानीय रहवासी बताते हैं कि अब राजपरिवार की प्रतिष्ठा और उनके सदस्यों की व्यवहारिकता में पहले जैसी बात नहीं रही, और अब यह राजपरिवार चार दीवारी तक ही सिमट गया है। रामचंद्र सिंहदेव की भतीजी अम्बिका सिंहदेव फिलहाल बैकुंठपुर से विधायक के तौर पर यहाँ राज कर रहीं हैं, मगर क्या आपको लगता है कि वो राजमहल की वही पुरानी प्रतिष्ठा एक बार फिर स्थापित कर पाएंगी ?

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