नईदिल्ली : लोकसभा में कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का दिया नोटिस
नई दिल्ली : एक पुरानी कहावत है कि राजनीति में न तो कोई स्थाई दुश्मन होता है और न ही दोस्त। कल तक एनडीए में बीजेपी से दोस्ती निभाने वाली टीडीपी ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस देकर एक बार फिर इस कहावत को सही ठहराया है। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पूरी नहीं करने पर टीडीपी नैशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (एनडीए) छोडऩे का फैसला कर चुकी है। आंध्र प्रदेश के सीएम और टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने अब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है। वाईएसआर कांग्रेस ने भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। इस बीच कांग्रेस ने भी इस पर साथ देने का ऐलान कर दिया है।
मोदी सरकार का क्या होगा?
अविश्वास प्रस्ताव आने पर मोदी सरकार पर कोई खतरा नहीं दिख रहा है, लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है। लोकसभा में फिलहाल बीजेपी के पास अकेले 273 सांसद हैं। लोकसभा में फुल बेंच की स्थिति में भी बहुमत के लिए 272 सांसदों का आंकड़ा होना चाहिए। ऐसी स्थिति में बीजेपी अकेले दम पर ही बहुमत साबित कर जाएगी। आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर केंद्र से पहले अपने दो मंत्रियों को हटाने वाली टीडीपी के पास लोकसभा में 16 सांसद हैं। वहीं वाईएसआर के 9 सांसद हैं।
कैसे खतरे में पड़ जाएगी सरकार?
बीजेपी की सहयोगी शिवसेना मोदी सरकार से काफी वक्त से नाराज चल रही है। शिवसेना ने 2019 में राज्य और लोकसभा का चुनाव भी अलग लडऩे की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव पर उसके फैसले पर भी सबकी नजर होगी। शिवसेना ने अभीतक बीजेपी के समर्थन की बात नहीं की है। लोकसभा में पार्टी के 18 सांसद हैं। वहीं, दूसरी तरफ अकाली दल और बीजेपी में भी हाल के दिनों में तल्खी की खबरें सामने आई हैं। लोकसभा में पार्टी के 4 सांसद है। अगर ये दोनों सहयोगी भी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में आते हैं तो भी सत्तारूढ़ दल को किसी प्रकार की कोई मुश्किल नहीं होगी। अगर माना जाए कि बीजेपी की सभी सहयोगी पार्टियां उसका साथ छोड़ भी दे तब भी सत्तारूढ़ दल को कोई मुश्किल नहीं आने वाली है। हालांकि यह दूर की कौड़ी ही है।
कैसे आ सकता है अविश्वास प्रस्ताव, क्या है प्रक्रिया
लोकसभा सचिवालय यह प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगा जब कम से कम 50 सांसद इसका समर्थन करें। अगर ऐसा हुआ तो यह मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास होगा। संसद की कार्यप्रणाली के तहत, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन वाईएसआर कांग्रेस के फ्लोर लीडर से प्रस्ताव लाने के लिए कहेंगी जिसे कम से कम 50 सांसदों को खड़े होकर सपॉर्ट करना होगा। हालांकि अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया के लिए यह जरूरी होगा कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले और कोई भी दल कार्यवाही में दखल न दे।
अविश्वास के लिए 50 का आंकड़ा ऐसे जुटेगा!
कांग्रेस टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस पर समर्थन देने की बात कह चुकी है। ऐसे में अब मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव आना तय लग रहा है। बता दें कि कांग्रेस के कुल 48 सांसद हैं। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के 16 और वाईएसआर कांग्रेस के 9 सांसद हैं। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी 50 का आंकड़ा विरोधी खेमे के पास मौजूद है।
लोकसभा में क्या है समीकरण 543 सदस्यीय लोकसभा में फिलहाल 536 सांसद हैं। इसमें बीजेपी के 273 सदस्य हैं, जबकि सहयोगी दलों के 56 सदस्य हैं। फिलहाल की स्ट्रेंथ के हिसाब से बहुमत के लिए 536 सदस्यों के आधे से एक अधिक यानी 269 सांसदों के आंकड़े की जरूरत है। ऐसे में बीजेपी अपने दम पर ही सरकार में बनी रह सकती है। यानी अगर अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर भी लिया जाता है तो निश्चित तौर पर यह गिर जाएगा।
2019 से पहले विपक्षी एकता का मौका
जिस तरह से यूपी उपचुनाव में एसपी-बीएसपी ने हाथ मिलाया है उससे एक बात तो साफ है कि विपक्षी दल अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर भी सकते हैं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से सदन में विपक्षी एकता दिखाने का यह मौका होगा। मायावती कह चुकी हैं कि बीजेपी समय से पहले चुनाव करा सकती है। एसपी ने 23 मार्च को होने वाले लोहिया जयंती के लिए माया को बुलावा भेजा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और एनसीपी मुखिया शरद पवार के बीच भी मुलाकात हो चुकी है। बिहार में आरजेडी ने एनडीए सहयोगी आरएलएसपी के महागठबंधन में शामिल होने का दावा भी कर चुके हैं।
एनडीए के सहयोगी भी नाराज
बीजेपी के लिए मुश्किल इसलिए भी है कि उसकी पुरानी सहयोगी शिवसेना भी उससे नाराज चल रही है। बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली आरएलएसपी के भी बीजेपी से नाराज होने की खबरें हैं। जीतनराम मांझी की हम पहले ही बिहार में आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो चुकी है। हालांकि इन दलों की नाराजगी के बाद भी बीजेपी को लोकसभा में किसी प्रकार की मुश्किल नहीं है। पर सहयोगी दलों की बेरुखी से विपक्षी दलों को मौका मिल सकता है।