Mandsour के ManoharLal के वीडियो के बारे में धर्मग्रंथों में क्या लिखा है ?

इंटरनेट की दुनिया में इन दिनों एक शख्स का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। नाम है मनोहरलाल धाकड़, जो मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले से ताल्लुक रखते हैं। हाईवे पर एक महिला के साथ घिनौनी हरकत करते हुए उनके इस वीडियो ने पूरे देश में एक बहस को जन्म दे दिया है ।
“संभोग करेंगे… बार-बार करेंगे… खुलकर करेंगे… किसी से डर नहीं है”
सोशल मीडिया पर ये क्लिप चर्चा का विषय बन चुकी है। जहां एक ओर कुछ लोग इसे आज़ादी’ का नाम दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई संतों और सामाजिक विचारकों ने इसे समाज के नैतिक पतन की निशानी बताया है।
एक प्रसिद्ध सन्यासी, स्वामी अच्युतानंद गिरि, ने इस वायरल वीडियो पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा – “संभोग प्रकृति की देन है, लेकिन जब यही इच्छा विकृति में बदल जाए, तो व्यक्ति का मनुष्यत्व नष्ट हो जाता है।”
उन्होंने कहा कि धर्म, योग और ध्यान का उद्देश्य मन की वासनाओं पर नियंत्रण करना है। “आज के युवा जिस खुलेपन की बात कर रहे हैं, वह आत्मा की स्वतंत्रता नहीं बल्कि इंद्रियों की गुलामी है।”
संभोग पर यह बहस कोई नई नहीं है। उपनिषद, गीता, बौद्ध धर्म और जैन दर्शन तक में वासना को मनुष्य के पतन का मूल कारण बताया गया है। हालांकि आधुनिक विज्ञान इसे शरीर और मन के स्वास्थ्य से जोड़ता है।
मनोहरलाल धाकड़ का वीडियो सिर्फ एक व्यक्ति का निजी मत नहीं रहा। ये समाज में गहराई से चल रही उस बहस को उजागर करता है जिसमें ‘निजी आज़ादी’ और ‘सामाजिक मर्यादा’ के बीच खींचतान है। स्थानीय नागरिकों से बात करने पर मिला-जुला रुख सामने आता है। एक कॉलेज छात्रा ने कहा –
“वो जो भी कर रहे हैं, वो उनका निजी विचार हो सकता है। लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐसा करना समाज में गलत संदेश देता है।
वहीं एक बुजुर्ग ग्रामीण ने प्रतिक्रिया दी – “आजकल के युवा शरम भूल गए हैं। कुछ तो मर्यादा होनी चाहिए।”
आइये अब आपको बताते हैं कि इस बारे में क्या कहते हैं धर्मग्रंथ.
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं: इंद्रियों, मन और बुद्धि को वश में कर, आत्मा को जानकर काम को नाश कर।” तो वहीं पतंजलि योगसूत्र में ‘ब्रह्मचर्य’ को आत्मिक उन्नति का मूल बताया गया है। मनोहरलाल धाकड़ का वीडियो आज की पीढ़ी के मानसिक और नैतिक स्वरूप का प्रतिबिंब बन गया है। जब आत्म-अभिव्यक्ति वासनाओं के प्रदर्शन में बदल जाए, तब संत चेतावनी देते हैं –
वासना का रथ जब बेलगाम हो जाए, तो वह या तो व्यक्ति को रसातल में ले जाता है या पूरे समाज को।”
कुल मिलाकर संभोग – न तो कोई पाप है, न कोई तप। ये प्रकृति की एक व्यवस्था है, जिसे संतुलन और मर्यादा से जीया जाए तो यह ऊर्जा बनती है। लेकिन जब यही इच्छा अति बन जाए, तो यह पतन की सीढ़ी बन सकती है। जैसा मनोहरलाल के साथ हुआ है ।
“ऐसे विषयों पर समाज में खुला विमर्श जरूरी है – लेकिन वह मर्यादा और विवेक के साथ हो। क्योंकि विचारों की स्वतंत्रता और सामाजिक ज़िम्मेदारी, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।