छत्तीसगढ़ न्यूज़ | Fourth Eye News

बाँस के सूक्ष्म प्रजनन की नई तकनीक पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का भव्य समापन

रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के आणविक जीवविज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग में आयोजित पाँच दिवसीय “बाँस के टिशू कल्चर के माध्यम से सूक्ष्म प्रजनन पर क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम” आज सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। समापन समारोह में कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जबकि कृषि महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. आरती गुहे ने समारोह की अध्यक्षता की।

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम खासतौर पर युवा शोधकर्ताओं, तकनीकी कर्मियों और स्नातकोत्तर छात्रों के लिए तैयार किया गया था, ताकि बाँस के सूक्ष्मप्रजनन की वैज्ञानिक समझ और व्यावहारिक दक्षता में सुधार हो सके। कार्यक्रम में कुल 20 प्रतिभागी शामिल हुए, जिनमें विश्वविद्यालय के विभिन्न केंद्रों के 12 वैज्ञानिक और तकनीशियन तथा विभाग के 8 छात्र थे।

समापन सत्र की शुरुआत अतिथियों के स्वागत से हुई, उसके बाद आयोजन सचिव डॉ. ज़ेनू झा ने पाँच दिनों के प्रशिक्षण का विस्तृत सार प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण में एक्सप्लांट की तैयारी, शूट मल्टीप्लिकेशन, रूटिंग तकनीक, संदूषण प्रबंधन और आणविक नैदानिक प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान दिया गया। प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के प्रति उत्साह दिखाते हुए डॉ. श्याम सुंदर शर्मा (टेरी, नई दिल्ली) द्वारा आयोजित वाणिज्यिक सूक्ष्मप्रजनन के सत्र को सबसे आकर्षक बताया।

अधिष्ठाता डॉ. आरती गुहे ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम केवल अकादमिक नहीं बल्कि प्रयोगात्मक स्तर पर भी लागू होने चाहिए, जिससे कृषि क्षेत्र में नवाचार और विकास को बढ़ावा मिले। कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने प्रतिभागियों की मेहनत की सराहना करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ऐसे प्रशिक्षणों को जारी रखेगा और राष्ट्रीय बाँस मिशन के उद्देश्यों के अनुरूप काम करता रहेगा।

कार्यक्रम का समापन डॉ. सुनील कुमार वर्मा के धन्यवाद ज्ञापन और प्रमाण पत्र वितरण के साथ हुआ। इस आयोजन ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की हरित जैवप्रौद्योगिकी और सतत कृषि में नेतृत्व की भूमिका को एक बार फिर स्थापित कर दिया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button