छत्तीसगढ़ में बिजली का झटका: आधा बिल अब सिर्फ बातों का नहीं, यूनिटों का भी आधा!

छत्तीसगढ़ की ‘हाफ बिजली बिल योजना’ जो कभी आम जनता की जेब पर राहत का मरहम थी, अब उसी जनता के लिए एक नई परेशानी बनकर सामने आई है। वो योजना, जो 400 यूनिट तक आधे बिल का वादा करती थी, अब महज 100 यूनिट तक सिमट गई है। यानी पहले जिस उपभोक्ता को 200 यूनिट बिजली तक बिल माफ़ नजर आता था, अब वही उपभोक्ता 50 यूनिट तक ही मुफ़्त बिजली का फायदा उठा सकेगा। बाकी के लिए उसे खालिस दर पर भुगतान करना होगा।
सरकार ने इसे “संशोधन” कहा है, लेकिन उपभोक्ताओं की नजर में ये “कटौती” है – वो भी ऐसी, जो सीधे तौर पर मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की जेब में हाथ डालती है।
योजना का पहले था ये गणित:
1 मार्च 2019 को जब यह योजना शुरू हुई थी, तब इसका मकसद साफ था – घरेलू उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत। नियम भी उतने ही सीधे थे – अगर आपकी खपत 400 यूनिट या उससे कम है, तो आधा बिल दीजिए।
खपत ज़्यादा भी हुई, तो पहले 400 यूनिट तक तो राहत मिलेगी ही।
अब क्या बदला है?
अब सरकार ने नया नियम लागू कर दिया है – सिर्फ पहले 100 यूनिट तक ही हाफ बिजली बिल का लाभ मिलेगा।
100 यूनिट के बाद उपभोक्ता को पूरे रेट पर भुगतान करना होगा – यानी राहत तो मिली, लेकिन मुट्ठी भर।
असर किस पर?
सरकार कहती है कि इससे गरीबों को फायदा होगा, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि इससे सबसे ज़्यादा नुकसान उन परिवारों को होगा जिनकी खपत हर महीने 150 से 400 यूनिट के बीच है – जो कि छत्तीसगढ़ के लाखों शहरी और कस्बाई उपभोक्ताओं की श्रेणी में आते हैं।
मान लीजिए आप 350 यूनिट बिजली खर्च करते हैं –
तो आपको बिल कुछ यूं भरना पड़ेगा:
- पहले 100 यूनिट ₹4.10 की दर से
- अगला 100 यूनिट ₹4.20 पर
- फिर 150 यूनिट ₹5.60 की दर पर
पहले इस पूरी खपत पर 50% की राहत थी। अब सिर्फ पहले 100 यूनिट पर छूट मिलेगी, बाक़ी के लिए पूरा भुगतान करना होगा।
यानी जितनी ज़्यादा खपत, उतना ज़्यादा झटका।
सवाल उठता है – क्यों बदली गई योजना?
सरकार की ओर से साफतौर पर कहा गया है कि यह बदलाव आर्थिक प्रबंधन और वास्तविक जरूरतमंदों तक सब्सिडी पहुंचाने के लिए किया गया है। ऊर्जा विभाग के मुताबिक, इससे सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और लक्षित वर्ग को अधिक फायदा मिल सकेगा।
सरकार की ओर से ऊर्जा मंत्री का कहना है कि नई व्यवस्था गरीबों के हित में है। जिन उपभोक्ताओं की खपत 50-100 यूनिट तक है, उन्हें इस योजना का पूरा लाभ मिलेगा। पहले ज़्यादा खपत करने वाले भी इस छूट का लाभ उठा रहे थे, जिससे असली जरूरतमंद वंचित रह जाते थे।
लेकिन सवाल यही है कि जो योजना सबके लिए थी, क्या उसे कुछ वर्गों तक सीमित कर देना ही सही रास्ता है? क्या महंगाई के इस दौर में जनता को राहत देने की बजाय राहत की सीमा तय कर देना, नीतिगत मजबूरी है या सियासी प्राथमिकता?
सरकार जवाब देती है कि इससे “लक्ष्य आधारित मदद” सुनिश्चित होगी। लेकिन जनता पूछ रही है – “राहत में भी अब राशनिंग?”