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अमेरिकी ही नहीं चाहते ट्रंप को मिले नोबेल शांति पुरस्कार ?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में जोरदार दावा किया कि वे नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में सात युद्धों को रुकवाने का श्रेय उन्हें जाता है, जिसमें भारत-पाकिस्तान संघर्ष भी शामिल है। ट्रंप का मानना है कि हर कोई कहता है कि उन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलना चाहिए।

लेकिन इस दावे का स्वागत अमेरिका में नहीं हो रहा। एक्सियोस और वॉशिंगटन पोस्ट-इप्सोस द्वारा किए गए सर्वे में सामने आया कि अमेरिकी जनता का तीन-चौथाई हिस्सा ट्रंप के इस दावे का विरोध करता है। केवल 22% लोगों ने ट्रंप को नोबेल पुरस्कार के योग्य माना। इसके अलावा, उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के भी आधे से ज्यादा सदस्य उनका समर्थन नहीं करते।

व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एना केली ने साहसिक बयान देते हुए कहा कि ट्रंप ने दशकों से चले आ रहे संघर्षों को समाप्त कर हजारों जिंदगी बचाई हैं। उनका कहना है कि ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार से कई गुना ज़्यादा हकदार हैं क्योंकि उनकी प्राथमिकता जान बचाना है।

दिलचस्प बात यह भी है कि सर्वे के अनुसार अधिकांश अमेरिकियों का मानना है कि ट्रंप से पहले राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी 2009 में यह पुरस्कार मिला था, लेकिन वह भी पूरी तरह से इसके हकदार नहीं थे।

वहीं, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ट्रंप की दावेदारी पर शर्त लगाई है। उन्होंने कहा है कि ट्रंप तभी नोबेल शांति पुरस्कार जीत सकते हैं जब वे गाज़ा में इजरायल और फलस्तीनी संघर्ष को रोकने में सफल हों। मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान कहा कि गाज़ा संघर्ष ही इस पुरस्कार के लिए निर्णायक कारक होगा।

इस प्रकार, ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार का दावा राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर विवादित बना हुआ है, और इसे लेकर वैश्विक स्तर पर भी प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं।

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