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बिहार में लोकतंत्र का महाउत्सव: वोटिंग का रिकॉर्ड और सियासत के नए समीकरण!

बिहार फिर चर्चा में है — और इस बार वजह है रिकॉर्ड वोटिंग!
पहले चरण में 64.69% मतदान के साथ बिहार ने इतिहास रच दिया. रातभर ईवीएम में बंद भविष्य के साथ सूबे की सियासी बिसात भी करवट ले रही है.
7% का यह उछाल सत्ता के गलियारों में हलचल मचा रहा है — क्या जनता बदलाव चाहती है या फिर विकास के नाम पर सत्ताधारी गठबंधन को ही मौका दे रही है?

तेजस्वी यादव का दावा — ‘परिवर्तन की लहर’

तेजस्वी यादव ने बढ़े हुए मतदान को “जनता का बदलाव के पक्ष में जनादेश” बताया.
उनका कहना है —

“यह वोट बेरोज़गारी, महंगाई और थक चुके शासन के खिलाफ है. 36 लाख नए वोट सीधे महागठबंधन के पक्ष में गए हैं.”

उनके मुताबिक, युवाओं और गृहिणियों ने अबकी बार सिर्फ वोट नहीं, बल्कि ‘भविष्य’ चुना है.

एनडीए का पलटवार — ‘सुशासन की जीत’

केंद्रीय मंत्री प्रधान ने तेजस्वी के दावे को खारिज करते हुए कहा —

“यह एंटी-इन्कम्बेंसी नहीं, बल्कि प्रो-इन्कम्बेंसी है. महिलाओं और गरीबों ने प्रधानमंत्री की योजनाओं पर भरोसा जताया है.”

एनडीए का मानना है कि शांतिपूर्ण वोटिंग और भारी महिला भागीदारी ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है.

प्रशांत किशोर का नया ‘फैक्टर’ — प्रवासी मजदूर और युवा

पीके का दावा अलग है —

“यह वोट न एनडीए को, न महागठबंधन को. यह वोट है बदलाव के लिए. प्रवासी मजदूर और बेरोज़गार युवा इस बार निर्णायक भूमिका निभाएंगे.”

उनका मानना है कि जाति से परे अब मुद्दा सिर्फ रोज़गार और विकास है.

विश्लेषकों की नज़र — महिला बनाम युवा की जंग

राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रमेश चंद्र कहते हैं —

“ग्रामीण और दलित महिलाओं की भागीदारी सिर्फ मुफ्त अनाज की वजह से नहीं, बल्कि भविष्य की आकांक्षा से जुड़ी है.”

बिहार की सियासत अब एक अनोखे द्वंद्व में है —

महागठबंधन युवाओं के सपनों को साध रहा है,

एनडीए महिलाओं के भरोसे को भुना रहा है.

‘साइलेंट किलर’ फैक्टर — गांव की महिलाएं और मजदूर वर्ग

पटना में वोटिंग कम, गांवों में ज़्यादा.
यह बताता है कि असली खेल मैदान में है, जहां किसान, मजदूर और गांव की महिलाएं तय करेंगी कि सत्ता की चाबी किसके हाथ में जाएगी.

वोट किसे नहीं, किस उम्मीद को मिला?

बिहार ने अपना काम कर दिया है.
अब फैसले का वक्त 14 नवंबर को आएगा, जब ईवीएम का ताला खुलेगा.
कहानी का क्लाइमेक्स बाकी है — और लोकतंत्र का हीरो, हमेशा की तरह, जनता ही होगी.

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