
दिल्ली. देश की अदालतें अपने काम काज के कारण लोगों के निशाने पर रहती हैं. ऐसा कहा जाता है कि अदालतों से न्याय की उम्मीद करना बेमानी है. इस मामले को जानने के बाद तो यही लगता है.
दरअसल बिलासपुर के अच्छे लाल दुबे जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक मर्यादित बिलासपुर में कैशियर के पर पर तैनात थे. बैंक की होने वाली नियमित ऑडिट में उनके पास से दो लाख 40 हजार रुपये की रकम कम पाई गई.
जिसके बाद बैंक मैनेजमेंट ने उन पर गबन का आरोप लगाकर उनकी सेवाएं 1982 में समाप्त कर दी. इसके बाद दुबे ने बैंक प्रबंधन के आदेश के खिलाफ उप पंजीयक सहकारी संस्थाएं के कार्यालय में मुकदमा दायर किया. जहां से उन्हें राहत नहीं मिली फिर उन्होंने सहकारिता ट्रिब्यूनल ने मुकदमा दायर किया. जहां से भी उन्हें न्याय नहीं मिला. आखिरकार 1999 में उन्होंने एमपी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की.
इस दौरान उनकी मौत हो गई लेकिन उनके परिजनों ने न्याय की ये लड़ाई जारी रखी. अब उनकी मौत के करीब 20 साल बाद जस्टिस पी. सेमकोशी की अदालत ने बैंक प्रबंधन की कार्रवाई को एकपक्षीय मानते हुए रद्द किया और उन्हें न्याय दिया.