जगदलपुर : पिछले 7 वर्षों से भी अधिक समय से नक्सल प्रभावित बस्तर के क्षेत्रों में बांस कटाई का कार्य बंद पड़ा हुआ है। जबकि केन्द्र सरकार द्वारा राजस्व भूमि पर उगाए बांस को वृक्ष की श्रेणी से हटाकर इसे घास की प्रजाति में डाला गया है। इसके प्रचलन में आ जाने से वनवासी इसका बेरोकटोक उपयोग और परिवहन कर सकते हैं, लेकिन वे अभी भी बांस के वनों को काटने में हिचक रहे हैं जबकि ये वन उनकी खुद की निजी भूमि में लगे हुए हैं। इस प्रकार वनवासियों को उनके खेत का दोहन करने का भी नक्सली आंतक के कारण अधिकार नहीं है। अपनी भूमि के वनों को काटने के लिए ना तो उन्हें वन विभाग से अनुमति या टीपी बनवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन वन भूमि पर प्राकृतिक तौर पर उगे बांस के लिए यह छूट नहीं मिल सकेगी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 के बाद से नक्सल प्रभावित इलाकों से बांस की कूप कटाई का काम बंद पड़ा है जिससे दक्षिण बस्तर के अंतर्गत दंतेवाड़ा वन मंडल में इंद्रावती नदी पार स्थित कोसलनार, मंगनार और अरनपुर इलाके में स्थित कुल 9 कूपों के बांस का दोहन नहीं हो पा रहा है। इसके चलते वन काष्ठागार में निस्तारी उपयोग के लिए बांस ही नहीं मिल रहा है।
Please comment