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छत्तीसगढ़ की आत्मा हैं बाबा गुरु घासीदास: सतनाम से समाज तक, एक विचार जिसने पूरा प्रदेश बदल दिया

रायपुर। छत्तीसगढ़ की मिट्टी केवल जंगल, खनिज और नदियों की पहचान नहीं है, बल्कि यह उस विचार की धरती है जिसने सदियों से दबे समाज को आत्मसम्मान का रास्ता दिखाया। इस विचार के केंद्र में हैं — बाबा गुरु घासीदास, जिनका नाम छत्तीसगढ़ की पहचान से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

बाबा गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को गिरौदपुरी में हुआ, जो वर्तमान में बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में आता है । उस दौर में समाज जाति, छुआछूत और अंधविश्वास में जकड़ा हुआ था। ऐसे समय में बाबा घासीदास ने एक सरल लेकिन क्रांतिकारी संदेश दिया — और वो संदेश “मनखे-मनखे एक समान” का था, यानी हर इंसान बराबर है।

बाबा गुरु घासीदास ने सतनाम पंथ की स्थापना की, जिसका सीधा अर्थ है — सत्य का मार्ग। ये धार्मिक विचार और सामाजिक क्रांति थी । उन्होंने छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में जाकर लोगों को बताया कि ईश्वर एक है, और इंसान की पहचान कर्म से होती है, जाति से नहीं । आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में सतनाम का प्रभाव साफ दिखता है —

बाबा गुरु घासीदास केवल सतनाम पंथ के प्रवर्तक नहीं थे, बल्कि छत्तीसगढ़ की चेतना थे। उन्होंने यह सिखाया कि बदलाव तलवार से नहीं, विचार से आता है। आज भी अगर छत्तीसगढ़ को समझना है, तो बाबा गुरु घासीदास को जानना जरूरी है।

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