नेपाल में फिर उठी सियासी भूचाल की लहर!

नेपाल की राजनीति एक बार फिर अस्थिरता के दौर में पहुंच गई है। जेन Z के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शनों के बाद जहां उम्मीद की किरण दिखी थी, वहीं अब लोकतंत्र पर नए साये मंडराने लगे हैं।
बीते महीने युवा आंदोलन की मांग पर बनी अंतरिम सरकार, जिसका नेतृत्व पूर्व मुख्य न्यायधीश सुशीला कार्की कर रही हैं, अब चुनौतियों के घेरे में है। सरकार ने मार्च 2026 में लोकतांत्रिक चुनाव कराने का वादा किया था, लेकिन अब यह योजना अधर में लटकती दिख रही है।
सूत्रों के अनुसार, 5 मार्च को होने वाले नेपाली आम चुनाव को टालने की चर्चाएं तेज हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि मतदान अब मई या जून 2026 तक खिसक सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सत्ता संतुलन की यह खींचतान देश को फिर से अस्थिरता की ओर धकेल सकती है।
सूत्रों ने यह भी दावा किया है कि मौजूदा रणनीति के तहत नेपाली कांग्रेस (N) और यूएमएल (कम्युनिस्ट पार्टी) जैसी पुरानी ताकतों को कमजोर करने और पश्चिम समर्थक उभरते गुटों को लाभ पहुंचाने की कोशिश हो रही है। वहीं कुछ आंतरिक और बाहरी शक्तियां इस उथल-पुथल का इस्तेमाल नेपाल के युवा आंदोलन को भटकाने के लिए कर सकती हैं।
सितंबर में शुरू हुआ “जेन Z आंदोलन” भ्रष्टाचार और सियासी निष्क्रियता के खिलाफ देशभर में फूटा था। इस जनविद्रोह के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा, जबकि हिंसक टकरावों में 73 लोगों की मौत हो गई थी।
भारत की चिंता गहराई
भारतीय खुफिया एजेंसियां नेपाल की हर हलचल पर नज़र रखे हुए हैं। नई दिल्ली चाहती है कि नेपाल में जल्द से जल्द लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल हो। भारत को डर है कि लंबी राजनीतिक अनिश्चितता, आर्थिक संकट और बाहरी हस्तक्षेप देश को अस्थिर बना सकते हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे हालात में भारत विरोधी तत्व और चीन दोनों ही नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं।




