बड़ी खबर : आख़िरकार छग सरकार ने राजभवन को भेज ही दिया अपना जवाब
बड़ी रैली की तैयारी में कांग्रेस
नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आरक्षण के मसले पर हमारी राज्य सरकार और माननीय राजयपाल के बीच अभी तक ठनी हुई है। सरकार ने जिस तरह से हाईकोर्ट से 58 प्रतिशत आरक्षण निरस्त किए जाने के बाद बीते 2 दिसंबर को विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया था। जिसमें अनुसूचित जाति 13 प्रतिशत, अनुसूचित जन जाति 32 प्रतिशत, ओबीसी 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। इस तरह से राज्य में 76 प्रतिशत आरक्षण करने का विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो गया।
दिसंबर को ही मंत्रिपरिषद के सदस्य आरक्षण पर हस्ताक्षर करवाने के लिए राजभवन पहुंच गए। राज्यपाल ने इसका परीक्षण कराने के बाद हस्ताक्षर करने का आश्वासन दिया। बाद में उन्होंने सरकार से आरक्षण को लेकर दस सवाल पूछ डाले। हालांकि, सरकार की तरफ से अब राजभवन को जवाब भेज दिया गया है। लेकिन राज्यपाल ने इसका भी परीक्षण कराने की बात कहकर अभी तक विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। राजयपाल ने कहा था कि मैंने इस मामले से जुड़े कुछ अहम् सवाल प्रदेश सरकार को भेजे हैं उसपर अभी तक जवाब नहीं आया है। जवाब का इंतज़ार है तब इसपर कुछ फैसला करुँगी।
मगर अब राज्य सरकार ने आरक्षण विवाद पर आखिरकार राजभवन को अपना जवाब भेज दिया है। अपने भेजे गए जवाब में सरकार ने आरक्षण तय करने का आधार तो बताया है, साथ में राज्यपाल के सवाल पूछने पर ही सवाल उठा दिया है। सरकार ने लिखा है कि राज्यपाल को विधानसभा में पारित विधेयक का पर्यवेक्षण करने का अधिकार ही नहीं है। सरकार ने अपने जवाब में लिखा है कि एससी-एसटी आरक्षण के लिए 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है। चूंकि सरकार के पास अन्य पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के संबंध में स्पष्ट एवं प्रमाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं थे, इसलिए क्वांटीफाएबल डाटा आयोग बनाया गया था। आयोग से मिली जानकारी को ही आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से आधार माना गया है।
आयोग ने 3 साल तक परीक्षण किया। 18 जिलों में 22 बैठकें लीं। ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा और निकायों में मेयर इन काउंसिल से जानकारी जुटाई। इसलिए रिपोर्ट आरक्षण का मजबूत आधार बनीं। सरकार के अनुसार आरक्षण का प्रावधान करने के लिए विभिन्न न्यायालयों द्वारा पूर्व में दिए गए फैसलों को ध्यान में रखा गया है।इसके साथ ही वर्तमान आरक्षण अधिनियम में सर्वोच्च न्यायालय के विधि मान्य सिद्धांतों का भी ध्यान रखा गया है। लोक सेवाओं में आरक्षण विषय वस्तु एक ही होने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए पृथक संशोधन विधेयक नहीं लाया है। जवाब में लिखा गया है कि कई राज्यों में इसी तरह की प्रक्रिया अपनाकर आरक्षण में जनसंख्या को सही प्रतिनिधित्व देने की प्रक्रिया अपनाई गई है।
संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में राज्य को यह अधिकार दिया गया है कि वह परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की व्यवस्था करे। इसी प्रावधान को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने वर्तमान संशोधन विधेयक तैयार किया है। इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल से आग्रह किया गया है कि वे आरक्षण संशोधन विधेयक को मंजूरी दें।
आपको बता दें कि सोमवार को पीसीसी बैठक थी। कांग्रेस की नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा भी रायपुर दौरे पर हैं। इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजभवन के अफसरों पर जमकर नाराज हुए। मुख्यमंत्री ने तल्ख लहजे में कहा, राजभवन के विधिक सलाहकार क्या विधानसभा से भी बड़े हो गए हैं? मैंने राज्यपाल की जिद को ध्यान में रखते हुए और प्रदेश की पौने 3 करोड़ जनता को आरक्षण का लाभ मिले, ये सोचकर जवाब भेजा है। जिससे राज्यपाल का इगो भी सेटिस्फाई हो जाएगा। हमारे सभी अधिकारी जवाब देने के विरोध में थे। ऐसी कोई संवैधानिक व्यवस्था ही नहीं है। मगर अब राज्यपाल की ओर से कहा गया है कि परीक्षण करेंगे। कौन करेगा परीक्षण? परीक्षण के लिए हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट है। ये काम विधिक सलाहकार करेंगे। ये दुर्भाग्यजनक है इसलिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने तय किया है कि 3 जनवरी को बड़ी रैली निकाली जाएगी।
आपको यह भी बता दें कि आरक्षण विधेयक को लेकर कांग्रेस उग्र प्रदर्शन करने की तैयारी कर रही है। प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के नेतृत्व में बुलाई की गई पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) की पहली ही बैठक में इस मुद्दे पर आंदोलन का निर्णय लिया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेतृत्व में 3 जनवरी को राजधानी रायपुर में महारैली करेगी। इसमें करीब एक लाख कार्यकर्ताओं को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। बहरहाल, राजयपाल को भेजे गए जवाब के बाद क्या राजयपाल इस आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर करेंगी ? इस पूरे आरक्षण विवाद के लिए आप किसे ज़िम्मेदार मानते हैं ?