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चिकन गन टेस्ट: कैसे मुर्गा उड़ते विमान के इंजन की सुरक्षा का ‘सीक्रेट वेपन’ बन जाता है?

आसमान में उड़ते विमान को सबसे बड़ा खतरा किसी तूफान या बिजली से नहीं, बल्कि एक छोटे से पक्षी से होता है। टेकऑफ या लैंडिंग के दौरान पक्षी का इंजन से टकराना—यानी बर्ड स्ट्राइक—कभी-कभी इतनी गंभीर स्थिति पैदा कर देता है कि पूरा विमान खतरे में पड़ सकता है।

इसी जोखिम को समझते हुए हवाई जहाज बनाने वाली कंपनियां इंजनों को बेहद कठिन परीक्षाओं से गुज़ारती हैं। इन परीक्षाओं में सबसे दिलचस्प और हाई-इम्पैक्ट टेस्ट है—‘चिकन गन टेस्ट’। नाम भले मज़ेदार लगे, लेकिन इसका मकसद बेहद गंभीर है—यह जांचना कि क्या इंजन पक्षी की तेज टक्कर झेलकर भी सुरक्षित उड़ान जारी रख सकता है।

इस टेस्ट में एक बड़ी मशीन, जो तोप जैसी दिखती है, मरे हुए मुर्गों को तेज रफ्तार से इंजन पर फेंकती है। यह वही गति होती है जिस पर विमान हवा को चीरते हुए उड़ता है। मुर्गे का मांस, हड्डियों की बनावट और घनत्व असल पक्षी जैसा होने के कारण यह टक्कर वास्तविक बर्ड स्ट्राइक जैसी स्थितियां पैदा करता है।

कई लोग सोचते हैं कि इंजीनियर इसके लिए जिंदा मुर्गे इस्तेमाल करते होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। न केवल तकनीकी रूप से मरा हुआ मुर्गा पर्याप्त है, बल्कि जानवरों की सुरक्षा और कानून भी इस पर रोक लगाते हैं।

इस टेस्ट से इंजीनियर यह सुनिश्चित करते हैं कि इंजन किसी भी बर्ड स्ट्राइक के बाद कम से कम दो मिनट तक 75% पावर पर चलता रहे—ताकि पायलट के पास विमान को सुरक्षित उतारने का मौका बचा रहे।

यानी, आसमान में आपकी सुरक्षित उड़ान के पीछे ’चिकन गन’ और हवा से भी तेज चलती वैज्ञानिक तकनीक का कमाल छिपा है।

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