जिनपिंग हो जाओ सावधान !, अब अमेरिका और ब्रिटेन भेज रहे हैं एशिया में अपनी सेना
नई दिल्ली: चीन की विस्तारवादी सोच को अब दुनिया समझ चुकी है और अब उसकी इसी सोच के चलते अमेरिका ने उसे सबक सीखाने की ठान ली है। अमेरिका ने 2000 के दशक में अनिवार्य रूप से मध्य पूर्व पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा था. उस वक्त अमेरिका ने ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ चलाया था। अब उसका फोकस बदल गया है और पूरी तरह से चीन पर केंद्रित है।
अमेरिका अब अपने संसाधनों को नौसेना और वायु सेना में स्थानांतरित कर रहा है। 2010 में घोषित एयर-सी बैटल विचार के बाद चीन ने लंबी दूरी के बमवर्षक और पनडुब्बियों का उपयोग शुरू किया। चीन के साथ संभावित टकराव में समुद्री और विमानन क्षमता भी होगी जो महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसा इसलिए है, क्योंकि युद्ध का मैदान दक्षिण चीन सागर या अन्य समुद्री मोर्चों के पानी में होगा।
अमेरिका स्थायी रूप से जर्मनी में अपने सैनिकों की संख्या 34,500 से 25,000 तक कम कर रहा है। शेष सैनिकों को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नियुक्त किए जाने की उम्मीद है। इस तैनाती के बाद अमेरिकी सेना अपने वैश्विक दबदबे को फिर से कायम करेगी।
ट्रम्प प्रशासन वर्तमान में अपने समर्थन को लेकर दक्षिण कोरिया के साथ विस्तारित चर्चा में लगा हुआ है और जापान के साथ भी ऐसी ही वार्ता करेगा। अमेरिका से मेजबान-राष्ट्र समर्थन बढ़ाने का दबाव अपनी रक्षा रणनीति पर फिर से विचार कर सकता है।
चीन से निपटने के लिए ब्रिटेन भेज रहा सैनिक
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के खतरे से निपटने लिए ब्रिटेन भी एशिया में अपने सैनिक भेज रहा है। ब्रिटेन की सेना का मानना है कि एशियाई सहयोगी देशों की सुरक्षा को लिए स्वेज नहर के पास और ज्यादा सैनिक तैनात करके चीन पर शिकंजा कसा जा सकता है। इसके लिए ब्रिटेन के तीनों ही सेनाओं के प्रमुख मंत्रियों से मिले थे। ब्रिटेन के सेना प्रमुखों की बैठक में चीन के खतरे पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई।
ब्रिटेन में चीन के साथ संबंधों को नए सिरे से पारिभाषित करने पर जोर दिया जा जा रहा है। इसके अलावा ताइवान के साथ संबंध को मजबूत करने जोर दिया जाएगा। इसके लिए ब्रिटेन दक्षिण कोरिया और जापान के साथ संबंध को और ज्यादा मजबूत करेगा। ब्रिटेन की नौसेना ने ऐलान किया है कि वह स्वेज नहर में कुछ हजार कमांडो हमेशा के लिए तैनात कर रही है।
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